अंततोगत्वा

अंततोगत्वा

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विमान में अपनी निर्धारित विंडो सीट पर पहुंचकर मृदुला ने राहत की सांस ली। साथ लाए सामान को ऊपर के तहखाने में रखकर वह आराम से अपनी सीट पर पैर फैलाकर बैठ गई। घड़ी में सुबह के नौ बज रहे थे। अतः एयरपोर्ट में चहल- पहल की कोई कमी ना थी। पासवाली सीट अभी तक खाली थी और विमान के उड़ान भरने में लगभग आधे घंटे की देरी थी।

मृदुला पहली बार अकेली विदेश सफर पर कोलकाता से टोरंटो जा रही थी। इसलिए वह थोड़ी चिंतित-सी लग रही थी। इसके अलावा सुबह से हुई भागदौड़ जल्दी उठना, कैब बुक करना, समय से पहले एयरपोर्ट पहुंच पाने की चिंता, चेक-इन और इमीग्रेशन की सारी औपचारिकताएं पूरी करना इत्यादि के कारण अब वह हल्की सी थकान भी महसूस कर रही थी। अतः सीट पर बैठे-बैठे उसने अपनी आँखों को थोड़ी देर के लिए मूंद लिया।


पिछला हफ्ता उसका काफी तनावपूर्ण बीता था। मूलतः दो तरह की अनुभूतियों से वह गुजरी थी। एक ओर जहाँ उसकी शादीशुदा जिन्दगी में प्रचंड उथल- पुथल की अवस्था उत्पन्न हो गई थी वहीं दूसरी ओर उसकी रचना को अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त हुआ। एक ओर स्वीकृति थी तो दूसरी ओर भयानक अस्वीकृति!-- जिन्दगी सदा ऐसी ही विरोधाभासों से भरी होती हैं शायद! उसने अपने चौदह साल के वैवाहिक जीवन में काफी कुछ सहा था पर अब उसकी सहनशीलता की सारी सीमाएं पार हो चुकी थी। इसलिए उसे अपने आपको उस विवाह- बंधन से आज़ाद करना पड़ा।


सास के ताने, पति का रूखापन और तिरस्कार, बच्चियों के साथ सौतेलेपन की शिकायत सब कुछ सहन किया उसने। पर पति द्वारा उस पर हाथ उठाए जाना और चरित्र पर झूठा लांछन उसके स्वाभिमान से नहीं सहा गया। अपनी पेंशन वाली सरकारी नौकरी उसने महज सास को खुश करने के लिए छोड़ दिया था, बच्चियों के देखभाल का तो सिर्फ बहाना था। और उसके इतने वर्षों के त्याग, बलिदान और सेवा का यह पुरस्कार मिला! इन्हीं पारिवारिक अशांति से जब मृदुला का मन बहुत विरक्त हो जाता था तो वह कहानियाँ लिखती थी। इसी तरह एकदिन उसने अपनी कहानियों का एक संग्रह "टोरंटो साहित्य संसद" को भेजा था जो कि 2017 की 'सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय कहानी' के रूप में चुन ली गई । पुरस्कार लेने हेतु वह आज टोरोंटो जा रही है।


विमान का अब उड़ान भरने का समय हो गया था। विमान सेविकाएं सुरक्षा नियम समझा रही थी। तभी काले रंग का सूट पहने ऊँचे कद का एक शख्स तेज़ कदमों से चलता हुआ आया और अपने हाथ में रखे बोर्डिंग पास पर एकबार नज़र दौड़ा कर मृदुला से बोला, "मैडम, माफ़ी चाहूँगा, आप शायद मेरी सीट पर है!" मृदुला चौंककर आँखें खोलती है और उस शख्स को अपने सामने देखकर बिलकुल हक्की -बक्की रह जाती है।

हाँ,वह अभिरूप ही था , इतने वर्षों बाद ! 


अभिरूप बोस से मृदुला चक्रवर्ती का पहला परिचय एक दिन बस में हुआ था। क्लास समाप्त होने पर दोनों घर जा रहे थे। भीड़ बस में मृदुला को धक्के खाते देख अभि ने अपनी सीट उसे छोड़ दी थी। वह उन दिनों कोलकाता मेडिकल काॅलेज का छात्र हुआ करता था। मृदुला का काॅलेज भी काॅलेज स्ट्रीट में ही था। इसके बाद राह चलते दोनों की अक्सर भेंट हो जाया करती थी। दोनों का गंतव्य एक ही दिशा में जो था। अभि होस्टल में रहता था। धीरे- धीरे दोनों में मित्रता हुई । फिर चार-पांच सालों में उनकी मित्रता जाने कब प्यार में बदल गई। दोनों को अब एक-दूसरे के साथ आदत सी हो गई थी।


उन दोनों की जब नौकरी लगी तो एकदिन अभि को मृदुला अपने माता-पिता से मिलाने घर ले आई। हालांकि मृदुला ने घर में कभी अभि का जिक्र नहीं किया था ,पर माँ, बाबा न जाने कैसे अभि को देखते ही सब समझ गए। अपने ब्राह्मणत्व के अभिमान से चूर मि॰ चक्रवर्ती ने उस दिन डाॅ अभिरूप का जमकर अपमान किया। अपने सदा स्नेहिल पिता के इस रूप की मृदुला ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। वह विस्मय और शोक से पत्थर के समान हो गई थी। यहाँ तक कि जब अभि चुपचाप सिर झुकाए वहां से जाने लगा तब भी वह बुत बनी उसे देखती रही पर उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। फिर अभि उसे कभी नहीं मिला। उसने उसे होस्टल में, मेडिकल काॅलेज और सभी संभावित जगहों में कई-कई बार खोजा, पर अभि जैसे ग़ायब ही हो गया था।


बाबा के व्यवहार के लिए माफ़ी मांगने का मौका भी नहीं दिया उसने! जाति-पाती और ऊँच नीच का पाठ मृदुला को हालांकि बचपन से ही पढ़ाया गया था। पर उच्च जाति के ब्राह्मण परिवार में पैदा होने के बावजूद उसका आधुनिक शिक्षित मन हर उस चीज को गलत मानता था जो दो इंसान के बीच भेदभाव उत्पन्न करें। अभि के विचार भी उससे मिलते थे। उसे तो मानव मात्र से प्रेम था। डाॅक्टर होने के कारण वह सेवा और त्याग जैसी भावनाओं का पक्षधर था। अभि अब्राह्मण ज़रूर था पर स्नेह, सेवा, सहनशीलता जैसे मानवीय गुणों से भरा हुआ था । उस दिन मि॰ चक्रवर्ती के तीखे शब्दों को सुनकर वह वहां से चुपचाप चला आया था, गुरूजनों को पलटकर जवाब देना उसने न सीखा था। वही अभि आज इतने वर्षों बाद विमान में उसकी बगल वाली सीट पर बैठा था! और दोनों एक-दूसरे से नज़रें छिपाने में व्यस्त थे।


मृदुला अभी अपने अतीत की सैर कर रही थी कि अभि ने हिम्मत जुटाकर पूछा, "कैसी हो मृदुला?" चौंक कर मृदुला ने उसको देखा और दोनों की नज़रे एकबार फिर मिल गई। धीरे- धीरे दोनो सहज हो गए। खुलकर बातें होने लगी।

अभि ने बताया कि वह आजकल कनाडा में रहता है। वहीं उसका क्लिनिक और हाॅस्पिटल है। अभी तक अविवाहित है। उसका अधिकतर समय मरीजों के देखभाल में बीतता है। मृदुला ने भी बताया कि किस तरह उसके बाबा ने जात्याभिमान में अंधे होकर ब्राह्मण पर दुहाजू अनिल से उसकी जबर्दस्ती शादी तय कर दी। किसी की एक न सुनी। शादी के समय सास ने शर्त रखी थी कि बहू ऑफिस नहीं जा सकती। इसलिए शादी के तुरंत बाद उसे अपनी सरकारी नौकरी से जबरन इस्तीफ़ा देना पड़ा। फिर वह चौदह साल तक उन लोगों की सारी मांग पूरी करते करते किस तरह की मानसिक यातनाओं से गुज़री, और अब जब वह धीरे-धीरे अपने आपको कहानीकार के रूप में प्रतिष्ठित करना चाह रही थी तो वह भी उसके ससुराल वालों से देखा नहीं गया। आखिर, हारकर मृदुला ने पिछले हफ्ते अनिल से तलाक लेने का फैसला लिया यह सब उसने अभि को बताया।


बीस घंटे की नाॅनस्टाप फ्लाइट के बाद वे लोग टोरंटो के पीयरसन एयरपोर्ट में उतरे। अभि ने उसे अपना कार्ड दिया और साथ ही उसके घर वैन्कूवर आने का निमंत्रण भी। टोरोंटो कन्वेन्शन सेंटर में अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन का कार्यक्रम बड़ा शानदार था। मृदुला ने फिर कनाडा में रहने का निश्चय किया। वापस किसके पास जाती? कनाडा के लचीले इमीग्रेशन नियमों के तहत जल्द ही उसके विसा का बंदोबस्त भी हो गया।


दो वर्ष बाद।

मृदुला अपनी अथक परिश्रम के बदौलत कनाडा में अपने जीवन के नए अध्याय का शुरूआत करती है। यहाँ उसे अपनी प्रतिभा का कद्र और काफी यश मिलता है। अभि ने इन दिनों उसकी बड़ी मदद की। हालांकि वह दूर दूसरे प्रोविन्स में रहता था परंतु वैट्सएप और मैसेंजर द्वारा उनकी घंटों चैटिंग चलती थी। छुट्टी के दिन वे फोन पर बातें भी किया करते थे। एक दोस्त की तरह अभि हमेशा उसका हौसला बढ़ाता था और मृदुला को सही निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करता था। यहाँ तक कि दोनों एकबार फिर एक दूसरे से भावनत्मक रूप से जुड़ रहे थे। पर अपनी पिछली शादी के कटु अनुभवों से मृदुला अभी तक पूरी तरह उबर नहीं पाई थी।


आज मृदुला का 45वां जन्मदिन है। अभि किसी कंफरेन्स के सिलसिले में टोरन्टो आता है। वह मृदुला को डिनर पर ले जाता है। मृदुला को वह जन्मदिन के उपहार के लिए पूछता है तो वह हमेशा उसके साथ रहने की इच्छा व्यक्त करती है। अभि भावविह्वल हो जाता है। फिर कहता है कि वह तो हमेशा से उसी का है। इसलिए कभी शादी नहीं की उसने। मृदुला चाहे तो कल ही दोनों शादी कर सकते हैं। लेकिन मृदुला दोबारा शादी के लिए तैयार नहीं होती। उसे सिर्फ अभि का जिन्दगी भर का साथ चाहिए। अतः दोनों एक-दूसरे का कॉमन लाॅ पार्टनर बनने के लिए तैयार हो जाते हैं। कनेडियन सरकार अपने नागरिकों को यह हक देती है कि दो व्यक्ति बिना शादी किए जब तक चाहे एक साथ पति-पत्नी की तरह।



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