अंतर तीन पीढ़ियों का
अंतर तीन पीढ़ियों का
सुबोध की नींद तीन बजे खुल गई।कल शाम परिवार में जो वाद-विवाद हुआ उसकी यादें एक-एक करके उसके मस्तिष्क में आ रही थीं।वह दो पीढ़ियों की अनमेल विचारधाराओं के बीच स्वयं को फंसा महसूस कर रहा था। उसके बुजुर्ग पिताजी जो उसकी मां के स्वर्गवासी होने के बाद लगभग टूट से गए थे।वे स्पष्ट तो कुछ नहीं कहते पर वह उनके अंतर्मन की पीड़ा को स्पष्ट महसूस करता था।उसकी पत्नी उसकी अनुपस्थिति में उसके पिताजी को खरी-खोटी सुना देती। सुबोध से भी पिताजी की इच्छाओं को लेकर शिकायत करती। सुबोध के पिताजी उसके 10 वर्षीय पुत्र रोहन के साथ पहले प्रसन्न रहते थे लेकिन अब सुबोध की पत्नी रोहन को भी उनके पास नहीं फटकने देती इससे पिताजी का मन और अधिक खिन्न रहने लग गया था ।रोहन के ऊपर भी मां की सिखाई बातों का असर होने लगा था । पहले वह अपने दादाजी के पास जाता उनसे बहुत सी बातें पूछता अपने दोस्तों की बातें उन्हें बताता लेकिन अब वह भी उनके पास जाने से कतराने लगा। था उसकी इच्छा होती कि वह अपनी उम्र के दोस्तों के साथ भी खेले। उसे दादा जी के पास जाने में अब कोई रुचि नहीं रही थी।
सुबोध के पहली वाली पीढ़ी अर्थात उस के पिताजी की पीढ़ी और उसके बाद वाली अर्थात उसके बेटे की पीढ़ी और खुद अपनी उसकी अपनी वाली ।इन तीन पीढ़ियों के बीच में विचारों का जो विभेदीकरण था वह स्पष्ट नजर आ रहा था हर पीढ़ी की अपनी -अपनी इच्छाएं और समस्याएं होती हैं जिनके बीच में समायोजन कभी-कभी बहुत ही मुश्किल हो जाता है।
सबसे पहली पीढ़ी के लोग जो अपनी युवावस्था में अपने परिवार के मुखिया होते थे परिवार में हर मामले में उनकी अपनी इच्छाएं सर्वोपरि होती थी ।आज अगली पीढ़ी के आगे वे स्वयं को असहाय महसूस करते हैं और उनकी खीझ स्पष्ट दिखाई देती है। आज जिस पीढ़ी का वर्चस्व है उसकी नजरों में बुजुर्ग व्यक्ति आगे एक बोझ के समान महसूस होते हैं जबकि तीसरी पीढ़ी का वह लालन पोषण अपने स्वार्थ की भावना के वशीभूत होकर करता है कि आगे आने वाले समय में वह उसका सहारा बनेगा।
पीढ़ियों का यह अंतर विचारों में सदैव रहा है और सदैव रहेगा इसमें व्यक्ति को अपनी स्थिति को भाप पर अपने निर्णय लेने चाहिए कि जीवन में किस प्रकार समायोजन किया जा सकता है।
