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Ravi Ranjan Goswami

Others

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Ravi Ranjan Goswami

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अन्ना

अन्ना

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मेरी कंपनी ने मुझे प्रमोशन देकर मेरा स्थानांतरण चेन्नई कर दिया था। पहले थोड़ी घबराहट हुई क्योंकि अभी तक मैं अपने माता पिता के साथ दिल्ली मैं ही रह रहा था। किस्मत से मुझे नौकरी भी दिल्ली में ही मिल गयी थी। यह पहला प्रमोशन और स्थानांतरण था। नौकरी पेशा लोगों के लिए प्रमोशन कितना  महत्वपूर्ण होता है वही जानते हैं। क्योंकि यह आसानी से नहीं मिलता और समाज में व्यक्ति का सम्मान उसके पद के अनुसार होता है। फिर मुझे तो परिवार की भी कोई चिंता नहीं थी। मेरी अभी शादी नहीं हुई थी। अतः मैंने जाने का मन बना लिया। माता पिता ने भी सहर्ष आज्ञा दे दी। आखिर बेटे की पदोन्नति का मामला था।

चेन्नई की फ़्लाइट में बैठे हुए मैं सोच रहा था, एकदम अलग संस्कृति और भाषा वाली जगह जा रहा हूँ। क्या ठीक से उत्तरदायित्व निभा पाऊँगा। फिर खुद को हिम्मत दी, सब ठीक होगा और चेन्नई पहुँचने का इंतजार करने लगा।

सबसे बढ़िया बात ये थी कि चेन्नई में रहने की व्यवस्था कंपनी ने कर दी थी। मैंने सीधे वहाँ जाकर डेरा डाल दिया। एक कमरे वाला फ्लैट था जो मेरे लिए पर्याप्त था। पहला दिन मैंने आसपास का भूगोल समझने में लगाया। मेरा निवास नुंगामबाककम नामक स्थान पर था और कार्यालय विमान पत्तन के पास।

दूसरे दिन सुबह मैं ऑफिस पहुंचा । बॉस के के नायर मलयाली थे। सर्व प्रथम उनसे मिला। वे मृदु भाषी और सुलझे हुए लगे। उन्होंने हाल चाल पूछे और कहा, “ परवाह नहीं करना अगर परिवार को लेने जाना हो तो छुट्टी मिल जाएगी।“

मैंने कहा , “सर ,मैं अभी बैचलर हूँ ।”

वे हँसे और बोले , “क्या बीबी ही परिवार होती है? माता पिता भाई बहन भी तो हो सकते हैं भाई।” 

यह बात उनहोंने एक बुजुर्ग की तरह कही थी। वे उम्र मैं मुझसे बड़े भी थे । मैं उनकी बात सुनकर थोड़ा झेंप गया था ।

मैंने मुस्करा कर कहा, " माता पिता भाई बहन हैं, किन्तु वे मुझ पर आश्रित नहीं ”

वह मुस्कराकर बोले , “मतलब कि पूरी तरह आज़ाद हो।"

मैंने कहा, “ऑफिस की ज़िम्मेदारी तो है न ,सर।”

मेरे इस जवाब से वह खुश हो गये।

वह बोले , “गुड थॉट तुम नायडू से आज ही चार्ज ले लो। वो तुम्हें काम के बारे में भी जानकारी दे देगा। “

मैंने धन्यवाद बोल कर उनसे विदा ली और नायडू के पास चला आया।

मैंने नायडू से कार्यालय और कार्य संबंधी बातें की और फिर दायित्व ग्रहण किया। जगह छोड़ने से पहले उन्होंने कहा, "मैंने जो कुछ बताया सो ठीक है। कभी कोई भी समस्या हो तो अन्ना को बोलना। अन्ना उस दिन ऑफ़िस नहीं आया था। बाद में अन्न से परिचय हुआ। वह एक निराला व्यक्तित्व था। सांवला रंग,औसत लंबाई,थोड़ा मोटा, दिखने में ठीक ठाक, कपड़े कड़क प्रेस किए हुए पहनने वाला।

अन्ना में एक बुरी आदत थी। वह सिगरेट बहुत पीता था। उसके के पास हर मर्ज की दवा थी सिवाय अपनी सिगरेट पीने की आदत के। वह जब किसी कार्य में व्यस्त नहीं होता और अपने केबिन में होता तो लगातार सिगरेट पीता रहता था, शायद इसी वजह से उसे दीवार से लगा हुआ केबिन दिया गया था जिसमें बाहर की तरफ खिड़की थी। जिसे वक्त जरूरत खोला जा सकता था। अन्ना उसे थोड़ा सा खोल के रखता था।

कंपनी में जब कोई नया मैनेजर आता तो पुराना मैनेजर जाते जाते नये मेनेजर से कह जाता था , “कोई समस्या हो तो अन्ना को बोलना।”

मुझे भी नायडू ने यह बता दिया था। मेरी और अन्ना की केबिन अगल बगल थी। अन्ना के पास चार्ज जो भी हो वो अपनी सीट पर कम ही बैठता था। किन्तु अन्ना का महत्व इतना था कि उसके बिना जैसे कंपनी का काम नहीं चलेगा। खास तौर से वरिष्ठ अधिकारियों का काम उसके बिना नहीं चलता था।

अन्ना का व्यावहारिक ज्ञान ज़बरदस्त था। किराए का मकान, होटल में कमरा दिलाने से लेकर काम वाली बाई दिलाने जैसे मुश्किल काम वह आसानी से करता था। ऑफ़िस की सारी पार्टियों की व्यवस्था वही करता था। वह ऑफ़िस के कार्य पर भी अच्छी पकड़ रखता था। ये मुझे यूं ज्ञात हुआ कि एक दिन अन्ना को ऑफिस नहीं आना था । उसने नायर सर को फोन पर सूचित कर दिया । उस दिन सुबह से नायर सर परेशान रहे । अनेकों बार वे कर्मचारियों के टेबल पर जा के कार्य की जानकारियाँ लेते रहे । बीच बीच में बड़बड़ाते रहे , “मैंने अन्ना से कहा था कि अपना मोबाइल चालू रखना। आज पता नहीं क्यों स्विच ऑफ किया हुआ है !”

लंच के बाद अन्ना ऑफ़िस आ गया और नायर सर की जान में जान आ गयी। जिस कार्य के लिये वे सुबह से परेशान थे अन्न ने आधा घंटे में पूरा कर दिया। उसने एक सहायक को बुलाकर बताया कि संबन्धित फाइल किस अलमारी के किस खाने में रखी थी और उसमें क्या करना था। और इस प्रकार समस्या का समाधान शीघ्र हो गया। 


लेकिन उसको विशेष महारत हासिल थी पब्लिक डीलिंग में। उसकी महत्ता तब अधिक मालूम चलती थी,जब वह कुछ दिनों की छुट्टी लेता था। उन दिनों में वरिष्ठ अधिकारीगण के हाथ पाँव फूले रहते और माथे का पसीना नहीं सूखता । बड़े बड़े लोगों के फोन आना शुरू हो जाते कि फलाने की शिकायत पर तुरंत कार्यवाही करें या क्यों नहीं की ?अन्ना के आते ही सब की जान में जान आ जाती थी । ऊपर से फोन आना बंद हो जाते थे।

जनता या जनता का कोई नुमाइंदा कोई शिकायत लेकर आता था उसे अन्ना के पास भेज दिया जाता था । मैंने कई बार देखा कोई शिकायत करता गुस्से से भरा आता था वह भी अन्ना से मिलकर शांत और संतुष्ट वापस जाता था।

मैंने अन्ना से एक बार पूछा, “अन्ना आप जनता की शिकायतों को कैसे संभालते हो?”

अन्ना हँसे और कहा, “ अरे तुम्हें नहीं पता मेरे पास फॉर्मूला 44 है।”

मैंने कहा, “अन्ना मज़ाक नहीं। सच बताइए। मैंने देखा है कई बार शिकायतकर्ता गुस्से से तमतमाता हुआ आया और आपसे मिलने के बाद शांत होकर लौटा। ”

अन्ना ने दार्शनिकता पूर्ण उत्तर दिया, “मैं उनके नज़रिये से शिकायत समझता हूँ और उनसे हमदर्दी रखता हूँ।”

मैंने कहा, “थोड़ा विस्तार से बताइये ।”

अन्ना बोला, “मेरे कहने का मतलब है मैं उनकी जगह खुद को रख कर देखता हूँ । इससे मुझे अंदाजा लगता है कि वे कैसा महसूस कर रहे है और उनकी क्या अपेक्षाएँ हैं ।

मैंने पूछा, “ फिर ?”

तभी अन्ना के मोबाइल पर किसी का फोन आ गया ।

उसने कहा , “फिर?, फिर कभी। “ और वह चला गया ।

हर नौकरी पेशा व्यक्ति को एक दिन रिटायर होना पड़ता है। अन्ना का भी रिटायरमेंट का समय आया। अन्ना के रिटायरमेंट के एक आध महीने पहले से लोग चिंतित और नर्वस हो रहे थे। सब के दिमाग में चल रहा था अन्ना की जगह कौन?। कुछ कर्मचारियों ने प्रस्ताव रखा कि वे समूहिक रूप से मुख्यालय को अन्ना के एक्स्टेशन की सिफ़ारिश करें ।

किसी ने कहा, “ यह काम तो नायर सर भी कर सकते है ।”

उन्होने नायर सर से बात की। वो खुद भी ऐसा करने का सोच रहे थे । किन्तु पहले वह अन्ना का इस विषय पर विचार जानना जरूरी समझते थे ।

जब अन्ना आया तो नायर ने उसे बुला भेजा । उन्होने उसे बिठाया ।

उन्होंने अन्ना से कहा , “ऑफिस के सभी लोग और मैं भी चाहता हूँ कि तुम्हें सर्विस में कम से कम दो साल का एक्सटेंशन मिलना चाहिए । मैं इस संबंध में मुख्यलय को पत्र लिखने वाला हूँ । “

अन्ना ने एक्सटेंशन लेने से मना कर दिया ।

आखिरकार अन्ना सेवानिवृत हो गये। शानदार पार्टी हुयी। अन्ना की अनुपस्थिति कुछ दिन तक बहुत ज्यादा महसूस हुई किन्तु किसी के बिना दुनिया नहीं थमती। ऑफिस भी चलता रहा। अन्ना की जगह रामन कुट्टी ने ले ली किन्तु वक्त बेवक्त लोग अन्ना को याद कर ही लेते थे।

ऑफिस में वालसन नाम का एक चपरासी था। वो ऑफिस की फाइलें इधर से उधर लाने ले जाने और चाय पानी की व्यवस्था का काम देखता था। मैंने एक दिन वालसन से पूछा, “अन्ना साहब शिकायतें इतनी आसानी से कैसे निबटाते थे।”

वालसन ने कहा, “अन्ना साहब कैसे क्या करते थे पता नहीं। लेकिन जब कोई व्यक्ति शिकायत ले के आता था उसकी शिकायत ध्यान से और सहानुभूति पूर्वक सुनते थे। बहुत सी शिकायतें जो गुस्से, परेशानी, अहम और किसी कर्मचारी के अशिष्ट बर्ताव की वजह से होती थीं वे अन्ना से आगे बढ़ ही नहीं पातीं थीं। अन्ना अपने व्यवहार से उनका समाधान कर देते थे। शेष समस्याओं के लिये वे संबन्धित कर्मचारियों को उचित सलाह दे देते थे। ”

वालसन ने बहुत पते की बात कही थी, और अन्ना का फलसफा कमाल का था, जो बाद में मेरे भी बहुत काम आया ।


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