हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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अनमोल रिश्ता

अनमोल रिश्ता

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इस कहानी में "छलनी कर देना" मुहावरे का प्रयोग किया गया है । 

"मम्मी जी आजकल सर्दी बहुत तेज पड़ रही है । आप सुबह जल्दी मत जगा करो , ठंड लग जायेगी तो बीमार पड़ जाओगी" सरला ने गर्म चाय का प्याला अपनी सास को देते हुए कहा "तुम ठीक कहती हो बहू , पर मेरी आदत जल्दी जगने की है । नींद खुल जाती है तो फिर बिस्तर में पड़े रहने की इच्छा नहीं रहती है । गांव में तो मैं चक्की पीस लिया करती थी मगर यहां तो वो भी नहीं है इसलिए घर की साफ सफाई ही कर देती हूं । सोचती हूं कि तुम अभी नई नई आई हो इसलिए घर की सारी जिम्मेदारियां नहीं संभालनी पड़े तुम्हें । पर तुम मुझे कुछ करने नहीं देती हो इसलिए थोड़ा सा काम मैं कर देती हूं तो इससे क्या फर्क पड़ जाता है" ? 

"नहीं मम्मी जी, मेरे रहते हुए आप साफ सफाई करो, ये मुझे अच्छा नहीं लगता है । वैसे भी आप दिन भर कुछ न कुछ तो करती ही रहती हो । खाली तो कभी बैठती नहीं हो" । 


सरला की सास शांति को सरला की मीठी बातें और उसका व्यवहार बहुत भला लग रहा था । सरला को आये अभी छ: महीने ही तो हुए हैं । घर में सिर्फ तीन प्राणी हैं शांति, सरला और संजीव, शांति का पुत्र । शांति के पति की मृत्यु बहुत पहले हो गई थी । एक बेटी सीमा है जो अपने ससुराल में आराम से रहती है । जब से सरला बहू बनकर आई है तब से शांति को लगता है कि उसकी बेटी सीमा वापस आ गई है । दोनों स्त्रियां हिलमिल कर रह रही हैं । आज के जमाने में ऐसी सास बहू कहां मिलती हैं" ? 


उनकी बात कुछ और चलती कि फोन ने व्यवधान डाल दिया । संजीव की घबराई हुई आवाज सुनाई दी ।

"क्या हुआ दीदी को" ? 

"क्या ? अस्पताल में हैं अभी ? हम लोग बस निकल ही रहे हैं । थोड़ी देर में पहुंच जायेंगे" संजीव हड़बड़ा कर बोला । वह सरला और शांति को देखकर बोला "दीदी अस्पताल में भर्ती हैं , हमें तुरंत चलना है । आप लोग दोनों तैयार हो जाओ और अपनी अटैची जमा लो तब तक में गाड़ी की व्यवस्था करता हूं" । 


एक घंटे में वे तैयार होकर गाड़ी में बैठ गए और गाड़ी फर्राटा मारने लगी । गाड़ी में खामोशी व्याप्त थी मगर सबके दिलों में तूफान उठ रहा था । "पता नहीं क्या हुआ है सीमा को ? अब कैसी है वह ? क्या बीमारी है" ? पर इनका जवाब किसी के पास नहीं था । 


वे लोग सीधे ही अस्पताल आ गये थे । तीनों को देखकर सीमा बिलख पड़ी थी । शांति के सीने से एक छोटे बच्चे की तरह लिपट कर रो पड़ी थी सीमा "मम्मी, मैं अब कभी मां नहीं बन पाऊंगी" । सीमा ने बम फोड़ दिया । 


सबके सिरों पर जैसे हथौड़ा पड़ा हो । कांप गये तीनों जने । जैसे तैसे शांति बोली "ऐसे नहीं कहते बेटे । ईश्वर बहुत मेहरबान है हम पर । वह ऐसा नहीं कर सकते हैं, विश्वास रख" । शांति, सरला और संजीव तीनों सीमा को ढांढस और विश्वास दिलाने लगे । 

"ऐसा ही है मम्मी । मैं अब इस खाली शरीर के साथ कैसे जिऊंगी ? बिना बच्चों के एक स्त्री बिना फल वाले वृक्ष के समान है । गर्भाशय में इंफेक्शन होने के कारण पूरा गर्भाशय ही निकाल दिया है डॉक्टरों ने । मैं कैसे धीरज धरूं" ? 


सीमा का प्रश्न वाजिब था । इस प्रश्न ने तीनों के सीने छलनी कर दिये ? न कुछ कहते बन रहा था और न कुछ सुनते । सीमा बताने लगी कि कैसे उसके पांच महीने के गर्भ के दौरान कल रात अचानक दर्द उठा । उसे अस्पताल में भर्ती करा दिया । सोनोग्राफी हुई तब पता चला कि गर्भ में बच्चा तो कब का मर गया है और उसका इंफेक्शन पूरे गर्भाशय में फैल गया है । यदि गर्भाशय को नहीं निकाला गया तो सीमा की जान जा सकती है । इसलिए कोई और विकल्प नहीं था इनके पास । 


"विधाता को जो मंजूर होता है, वही होता है" शांति उसे दिलासा देने लगी । सीमा के पास रोने बिलखने के अलावा और कोई काम नहीं रह गया था इसलिए वह इस काम को बखूबी से अंजाम दे रही थी । शांति के हृदय पर सैकड़ों हथौड़े चल रहे थे । संजीव और सरला दोनों जने अंदर ही अंदर सुबक रहे थे । एक दिन रहने के बाद सीमा अस्पताल से घर वापस आ गई । ये लोग भी अपने घर लौट आये थे । 


लगभग दो महीने बाद सीमा अपने मायके आई तो वह काफी बदली बदली सी लग रही थी । उसने खुद को बहुत संभाल लिया था और वह अब हंसकर बात करने लग गई थी । इस बार वह मायके में थोड़ा रुकने के लिए आई थी । उसके दिल पर जो घाव लगा था उस पर परिवार के मलहम की आवश्यकता थी । शांति, सरला और संजीव ने घाव को भरने में पूरी मदद की थी । पर ये एक ऐसा घाव था जिसे भरने में बरसों लगने की संभावना थी । समय सारे घाव भर देता है । 


एक दिन सरला और संजीव कहीं गये हुए थे तब सीमा ने दबी जुबान से कहा 

"एक बात कहूं मम्मी , अगर आप बुरा ना मानो तो" ? 

शांति की आंखें विस्मय से विस्तृत हो गईं । "एक बेटी की बात का एक मां बुरा क्यों मानेगी" ? निस्संकोच होकर कहो, बेटी" । 

"सौरभ चाहते हैं कि हम एक बच्चा गोद ले लें" धीरे से सीमा ने कहा 

"ये तो बहुत अच्छी बात है बेटा । इस नेक काम को तो जल्दी से जल्दी कर लेना चाहिए" । शांति ने अपनी स्वीकृति दे दी । 

"मैं चाहती हूं कि अनाथाश्रम से हम लोग बच्चा गोद ना लें" । सीमा रुक रुक के बोली 

"फिर कहां से लोगे" ? शांति ने अधीर होकर पूछा 


एक पल के लिए वहां पर खामोशी छा गई । दोनों में से कोई कुछ नहीं बोली । खामोशी को तोड़ते हुए शांति बोली 

"क्या कुछ और सोचा है इस विषय में" ? 

"हां, सोचा तो है इसीलिए मैं आपसे बात करना चाहती हूं । क्या भाभी अपना बच्चा गोद देगी" ? 


शांति अवाक् रह गई । सरला की शादी हुए अभी आठ नौ महीने ही हुए थे । अभी तो उसके कोई बच्चा "लगा" भी नहीं था और अभी से गोद देने की बात होने लगी । "तालाब खुदा नहीं और मगरमच्छ रहने चले आये" वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी । शांति के मुंह से इतना ही निकला 

"अभी तो सरला के बच्चा लगा ही नहीं है और तुम ..." शांति की आंखों में आश्चर्य के भाव थे 

"मैंने कब कहा कि मुझे अभी बच्चा चाहिए । जब हो जाय, तब दे दें" सीमा को उम्मीद की कुछ किरणें दिखाई देने लगीं । 

"इस बारे में मैं कुछ भी नहीं कह सकती सीमा । मेरे लिए तुम और सरला दोनों बराबर हो । मैं न तो तुम्हारा पक्ष लूंगी और न सरला का । इसलिए मेरी सलाह है कि तुम सरला से स्पष्ट बात कर लो, यही ठीक रहेगा । मेरा बात करना ठीक नहीं है" । शांति ने इस प्रसंग से खुद को अलग कर लिया । 


सरला जब घर पर आई तो सीमा को कहने में अचकचाहट होने लगी । वह संकोच से कह नहीं पा रही थी । एक दिन संजीव और सरला दोनों बैठे हुए एक धारावाहिक देख रहे थे जिसमें दौरानी अपने बच्चे को जेठानी को गोद दे देती है । सीमा को लगा कि यही वह मौका है जब उसे वह बात चलानी चाहिए जिसके लिए वह आई है । वह सरला से बोली 

"भाभी" 

सरला एक मुस्कान बिखेरते हुए बोली "आप मुझे भाभी मत कहा कीजिए दीदी । मैं तो आपसे बहुत छोटी हूं, आप तो मेरा नाम लिया कीजिए न । ये भी तो आपसे छोटे हैं । आप इन्हें तो नाम से बुलाती हैं मगर मुझे भाभी कहती हैं । प्लीज दीदी, ऐसा मत करिये न" सरला के स्वर में आग्रह था । 

"उम्र में बेशक मैं तुम दोनों से बड़ी हूं पर रिश्ता तो हमारा ननद भौजाई का ही है । इसी रिश्ते के कारण मैं आपको भाभी कहती हूं और कहती रहूंगी" सीमा ने भी उससे अधिक प्यार से कहा 

"ठीक है दीदी, जैसी आपकी मरजी । कहो, क्या कहना चाहती हो" ? 

"सौरभ एक बच्चा गोद लेने को कह रहे थे । अगर तुम दोनों राजी हो तो तुम हमारे लिए एक बच्चा पैदा करके दे दो ना । वह चाहे लड़का हो या लड़की , वह हमारा होगा । बताओ, क्या यह प्रस्ताव मंजूर है तुम्हें" ? सीमा ने हिम्मत करके बात रख ही दी । 


सरला और संजीव की नजरें मिली और फिर सरला कहने लगी "दीदी, आपने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है । हम दोनों कल ही इस पर चर्चा कर रहे थे और कह रहे थे कि यदि दीदी राजी हों तो हम अपना पहला बच्चा आपको दे दें । आपने तो हमारी मुराद पूरी कर दी दीदी" । यह सुनकर सीमा खुशी से फूली नहीं समाई और उसने सरला को गले से लगा लिया । बात पक्की हो गई । पहला बच्चा सीमा का होगा । 


कुछ दिनों बाद सीमा को "खुशखबरी" मिल गई । सरला की कोख आबाद हो गई थी । अब उस बच्चे के स्वस्थ होने की दुआऐं दोनों माताऐं मांगने लगी थी । सरला ने मन कड़ा कर लिया था । उधर सीमा को एक एक दिन काटना भारी पड़ रहा था । 


आखिर वह दिन आ ही गया जब सरला को प्रसव पीड़ा होने लगी । सीमा और सौरभ दौड़े दौड़े आये । सरला को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया । थोड़ी देर में सूचना मिल गई कि सरला को बेटा हुआ है । सब लोग खुशी के मारे फूले नहीं समाए । सब लोग दौड़कर सरला के पास चले आये । सरला की ओर सीमा ने कृतज्ञता से देखा । सरला कहने लगी "दीदी और जीजाजी, आपकी अमानत आपको सौंप रही हूं" । उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव थे । 

"ले लेंगे, अभी क्या जल्दी है ? तुम पहले घर तो आ जाओ" । सीमा खुशी से बोली । घर को फूलों से सजाया गया । सरला और नन्हे राजकुमार का भव्य स्वागत किया गया । 


तीन चार दिन गुजर गए मगर सीमा ने "गोद" लेने और देने का कोई जिक्र नहीं किया तो सरला को संदेह होने लगा । एक दिन उसने सीमा को कह ही दिया "क्या बात है दीदी , आप अपनी बात से पीछे हटती नजर आ रही हैं" उसके अधरों पर एक अर्थपूर्ण मुस्कान थी । 

"ऐसी तो कोई बात नहीं है भाभी" सीमा नजरें चुराते हुए बोली 

"कोई तो बात है जिसे आप मुझसे छुपा रही हैं दीदी , बताइए न" । 

"दरअसल सौरभ कह रहे थे कि पहला बच्चा लड़का हुआ है । पहला बच्चा तो घर का वारिस होता है । पहले बच्चे को गोद देना ठीक नहीं है । इसलिए इसे तो आप अपने पास ही रखिए , हम लोग अगला बच्चा ले लेंगे" । सीमा के चेहरे पर बड़प्पन के भाव थे । 


यह सुनकर सरला को ऐसा लगा कि वह कंगाल होते होते बच गई थी । एक मां को अपना पहला बच्चा देने में उतना ही जोर आता है जितना एक व्यक्ति को जान देने में आता है । सरला की आंखों में सीमा के लिए आभार भरा हुआ था । 


दो साल बाद सरला फिर से उम्मीद से हुई तो सरला ने खुद ही कह दिया "दीदी, ये बच्चा आपका है । चाहे कुछ भी हो" । सीमा तो कब से इंतजार कर रही थी इस बच्चे का । उसके अरमानों के पंख लग गये । घर में बच्चों का सामान आने लगा । खिलौनों के ढेर लग गये । 


नियत समय पर बच्चा हो गया । इस बार लड़की हुई थी । सरला और सीमा को लड़का लड़की में भेद करना आता नहीं था इसलिए दोनों बड़ी खुश थीं । सरला बेटी को लेकर घर आ गई और उसे सीमा को देते हुए बोली "दीदी, आपकी अमानत आप संभालिए । मेरा काम पूरा हो गया है , अब आपका शुरू हो रहा है" । सरला के चेहरे पर हलका सा दर्द था । 


मां तो मां ही होती है चाहे वह कितनी ही महान हो , बच्चे के लिए तो उसकी ममता तड़पती ही है । सीमा ने उस लड़की को अपने कलेजे से लगा लिया और वह उसकी देखभाल करने लगी । सरला ने दूध पिलाना बंद कर दिया क्योंकि वह मानती थी कि यदि वह दूध पिलायेगी तो उस बच्ची में उसका ममत्व पड़ जायेगा । अत : वह सीने पर पत्थर रखकर बैठी रही । 


एक दिन सीमा सरला से बोली "भाभी आप बहुत महान हैं । आपने पहला बच्चा भी मेरी झोली में डाल दिया था और अब ये दूसरा बच्चा भी मुझे दे दिया है । लोग ननद भौजाई के रिश्ते को बहुत गलत नजरों से देखते हैं पर आपने इस रिश्ते को अनमोल कर दिया है । मैं थोड़ी स्वार्थी तो हूं पर इतनी भी नहीं कि आपकी खुशियों में मैं रोड़ा बन जाऊं । मैं जानती हूं कि एक परिवार में एक बेटा और एक बेटी तो होने ही चाहिए । भगवान ने आपको दोनों दिये हैं । इस तरह आपका परिवार पूर्ण परिवार बन गया है । अत : मैं इस पूर्णता में कोई कटौती नहीं करना चाहती हूं । मैं इस फूल सी कोमल बच्ची को पाकर खुद को धन्य समझती हूं मगर मैं आपके अधिकारों में कटौती करना नहीं चाहती हूं । इसलिए मैं यह बच्चा गोद नहीं ले सकती हूं । मैं अभी और इंतजार कर सकती हूं । अब तीसरा बच्चा केवल मेरे लिए ही पैदा करना" सीमा का गला और आंखें दोनों भर आये । त्याग के मैदान में दोनों बीस थीं । न कोई उन्नीस और न कोई इक्कीस । 

भगवान भी जब रिश्तों में इतना प्यार, आदर और सम्मान देखते हैं तब वे भी प्रसन्न होकर मुक्त हस्त से अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं । सरला को जब अगली बार प्रसव पीड़ा हुई तब डॉक्टर ने बताया कि उसे जुड़वां बच्चे हुए हैं । एक लड़का और एक लड़की । सीमा के भाग्य जाग गये । उसे सब्र का फल छप्पर फाड़कर मिला । दो दो बच्चों की मां बनकर सीमा धन्य हो गई । 



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