अनजान जगह
अनजान जगह
एकबार ऐसा हुआ कि मेरे बड़े भाई साहब के ससुर जी की तबियत खराब थी । हमें कहा गया जाकर उन्हें हम देख आएं..
हम भी दूसरे दिन उन्हें देखने चल दिये । उस समय वहीं पर मेरे बचपन का यार भी आया हुआ था । हमनें भी सोचा चलो इसी बहाने मेरा दो काम हो जायेगा।
एक पंथ दो काज की अभिलाषा लिए हम निकल पड़े ।
शाम तक हम वहाँ पर पहुंच ही गये जिधर वो लोग ठहरे थे । बात-चीत होती रही लोग हमें वहीं रुकने की आग्रह करते रहे। अधिक शाम हो जाने के कारण हम वापस घर नहीं आ सकते थे, दूरी लगभग सौ की .मी की थी ।
सोने का समय हो चुका था खाना पीना खाकर उपर छत पर मेरा बिस्तर लगा था । साथ में दो लड़के उनके घर के मेरे साथ बगल में आकर लेट गये । हमने भी सोचा चलो एक से भले तीन हो गये थे ।
स्थान परिवर्तन और उनकी शरारत ने मुझे रात भर सोने नहीं दिया । भोर में ही हम तैयार हो गये घर आने के लिए साथ में वो लोग भी आ गये उन्हें बनारस जाना था डॉक्टर को दिखाने ।
वे लोग बनारस की बस पर बैठे हम दूसरी बस से अपने गृह जनपद जौनपुर आ गये । रास्ते भर मेरी आँख कड़वा रही थी क्योंकि पूरी रात हम वहाँ सो नहीं पाये थे ।
अनजान जगह जल्दी नींद नहीं आती चाहे कोई भी हो जाकर अकेले महसूस कर सकता है । अपना घर अपने बिस्तर पर सोने की आदत सी बन जाती है ।
अपने घर की टूटी-फूटी खाट दूसरे के घर का मखमली बिस्तर में कुछ ना कुछ अंतर आ ही जाता है ।
मैं दिन में कहीं भी रहूँ मगर रात हमें अपने घर की अच्छी लगती है ।
