अन्द्रेइ - सबसे होशियार
अन्द्रेइ - सबसे होशियार
(बेलारूसी लोककथा)
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
कभी एक जिज्ञासु लड़का अन्द्रेइ रहता था. वह सब कुछ जानना चाहता था. जहाँ भी नज़र डालता, जो भी देखता, हर चीज़ के बारे में लोगों से पूछता, हर चीज़ के बारे में जानकारी हासिल करता. आसमान में बादल तैर रहे हैं...वे कहाँ से आए? और कहाँ जा रहे हैं? गाँव के पीछे नदी शोर मचाती है...किधर को बह रही है? जंगल बढ़ता है...उसे किसने लगाया था? पंछियों के पंख क्यों होते हैं, वे हर जगह आज़ादी से उड़ते हैं, और क्यों इन्सान के पंख नहीं होते?
लोग उसकी बातों का जवाब देते, जवाब देते रहते, मगर आख़िर में उन्हें पता चलता है कि वे ख़ुद ही तो नहीं जानते कि क्या जवाब दें, "तू, अन्द्रेइ, सबसे ज़्यादा अक्लमन्द होना चाहता है," लोग उस पर हँसने लगे, "क्या हर चीज़ जानना संभव है?"
मगर अन्द्रेइ को विश्वास नहीं होता, कि सब कुछ जानना संभव नहीं है,
"सीधे सूरज के पास जाऊँगा," अन्द्रेइ ने कहा, "वह हर जगह चमकता है, सब कुछ देखता है. मुझे 'वो' बताएगा, जो मैं ख़ुद नहीं जानता. वह अपनी झोंपड़ी छोड़कर उस जगह की तलाश में चल पड़ा जहाँ सूरज रात में सोने के लिये डूबता है. जा रहा है, जा रहा है, देखा – रास्ते के पास एक पत्थर पर कोई आदमी बैठा है और सबसे पूछ रहा है : "क्या मुझे यहाँ बड़ी देर तक बैठना पड़ेगा?"
और अन्द्रेइ भी उसे कोई जवाब न दे सका.
वह आगे चला. देखा कि एक आदमी कंधों से बागड़ को सहारा दे रहा है.
"चचा, ये तुम क्या कर रहे हो?" अन्द्रेइ ने पूछा, "पुरानी बागड़ को क्यों सहारा दे रहे हो?"
"नहीं जानता...हो सकता है तू जानता हो?"
"अगर जानता होता, तो उसे नहीं ढूँढ़ता जो सब कुछ जानता है." अन्द्रेइ ने कहा और आगे बढ़ गया.
कुछ और आगे चला, देखा कि एक आदमी कचरे के ढेर में कुछ ढूँढ़ रहा है.
"चचा, ये तू कचरे में क्या ढूँढ़ रहा है?"
"नहीं जानता."
"ओह, मैं भी नहीं जानता," अन्द्रेइ ने कहा और आगे बढ़ गया. न जाने वह कितनी दूर चला, फ़िर एक ऊँघते हुए जंगल में घुस गया. पूरे दिन जंगल में चलता रहा, और शाम होते-होते एक मैदान में निकला. – और यहाँ आकर उसकी आँखें इस तरह चकाचौंध हो गईं: मैदान से ऐसी चमक आ रही थी! उसने आँख़ें सिकोड़ीं – देखता क्या है कि पास ही में सूरज के घर आग से दहक रहे हैं. जैसे ही वह घर में घुसा – चकाचौंध के मारे कुछ भी न देख सका. थोड़ी आदत होने के बाद देखा – कुर्सी में सूरज की बूढ़ी माँ बैठी है.
"तू, नौजवान, यहाँ क्यों आ गया?" उसने पूछा.
अन्द्रेइ ने झुककर अभिवादन किया और कहा : "मैं सूरज के पास आया हूँ इसके, उसके बारे में जानने के लिये."
"और ये – इसके-उसके क्या है?"
"मतलब हर उस चीज़ के बारे में, जो मैं नहीं जानता."
"और तू ख़ुद क्या नहीं जानता?"
अन्द्रेइ उसे बताने लगा, और बूढ़ी सुनती रही - सुनती रही और उबासियाँ लेने लगी.
"ठीक है," वह बोली, "थोड़ी देर रुक जा, जल्दी ही मेरा बेटा रात बिताने के लिये लौटेगा. और तब मैं झपकी ले लेती हूँ: मैं दिन भर बैठे-बैठे थक गई हूँ."
अन्द्रेइ घर से बाहर निकला. उसने अलाव जलाया और सींक पर हैम भूनने लगा: लम्बा रास्ता चलने के बाद उसे भूख लग आई थी!
उसने भरपेट ब्रेड के साथ हैम खाया. पानी पीने का मन हुआ. नदी के पास गया और पानी की तरफ़ झुका. अचानक देखा – नदी के तल से एक लड़की ऊपर आ रही है, इतनी सुंदर कि आँख़ ही न हटा पाओ. और वह भी उसकी ओर देखती रह गई.
"नदी से पानी मत पियो," वह बोली, "वर्ना सूरज तुम्हें जला देगा!"
"मगर मुझे बेहद प्यास लगी है."
"मेरे पीछे आओ."
लड़की उसे पुराने शाहबलूत के पास लाई, और शाहबलूत के नीचे से साफ़, ठण्डे पानी का झरना फूट रहा था. अन्द्रेइ झुका और उसने जी भर के झरने का पानी पिया. और तभी सूरज आसमान से नीचे, अपने घर में उतरने लगा, उसके पास जाना चाहिये, मगर सुंदर लड़की से जुदा होने का साहस नहीं था.
"सुन, तू सूरज को मत बताना कि तूने मुझे यहाँ देखा है," लड़की ने कहा, वह ऊपर उठी और वहाँ से नन्हें, साफ़ सितारे के रूप में चमकने लगी.
अन्द्रेइ घर के भीतर गया. वहाँ सूरज इतना गर्म था कि दीवारें भी चटक रही थीं. मगर अन्द्रेइ को कोई फ़रक नहीं पड़ रहा था – उसने जी भरके झरने का पानी पिया था, इसीलिये सूरज उसे जला नहीं सकता था. उसने सिर्फ टोपी माथे पर खिसका ली, जिससे कि आँखों में जलन न हो.
उसने सूरज को बताया कि वह किसलिए आया था. सूरज ने कहा:
"तुझे सिखाने के लिये मेरे पास समय नहीं है. मगर मैं कुछ ऐसा करूँगा कि तू ख़ुद ही सब कुछ समझ जायेगा."
इतना कहकर सूरज ने अपनी सारी किरणों को एक गुच्छे में समेट लिया और उसके सिर पर प्रकाश डाला. पल भर में ही अन्द्रेइ समझ गया कि उसके दिमाग़ में हर चीज़ ज़्यादा स्पष्ट और ज़्यादा प्रकाशमान हो गई है, सिर्फ उसमें बेहद जलन हो रही है, और दिल एकदम सर्द हो गया, जैसे बर्फ़ हो...
वह घर से बाहर निकला. सर्द दिल के साथ उसे अच्छा नहीं लग रहा था. उसे लड़की की याद आई. और उसका दिल फ़िर से उसे देखने के लिये इस तरह मचलने लगा, कि वह बेहद ख़स्ताहाल हो गया. उसे पुकारने लगा. और आसमान से एक साफ़ तारा नीचे उतरकर उसके सामने ख़ूबसूरत लड़की में बदल गया. जैसे ही अन्द्रेइ ने उसकी ओर देखा, उसे फ़ौरन महसूस हुआ कि उसका दिल फ़िर से पहले जैसा हो गया है. उसने लड़की का हाथ पकड़ा और अपने देस की ओर ले चला. और अब वह इतना ख़ुश था कि उसे पंखों वाले पक्षियों से भी जलन नहीं हो रही थी.
वे उस आदमी के पास पहुँचे जो कूड़े में कुछ ढूँढ़ रहा था. अन्द्रेइ ने उसकी ओर देखा और सब कुछ समझ गया.
"तू," उसने उस आदमी से कहा, "कचरे में खोए हुए पैसे ढूँढ़ रहा है और बेकार ही अपना समय गँवा रहा है, इससे बेहतर ये होगा कि कोई काम कर ले – जल्दी ही खोये हुए पैसे ढूँढ़ने के बदले उन्हें कमा लेगा."
आदमी ने उसकी बात मान ली, वह काम करने लगा और उसने पैसे और सम्पत्ति कमा ली.वे आगे चले, उस आदमी को देखा जो कंधों से बागड़ को सहारा दे रहा था. अन्द्रेइ ने उसे देखा और कहा:
"ऐ इन्सान, उस चीज़ को सहारा न दे जो सड़ चुकी है, वह हर हाल में गिर ही जायेगी. बेहतर है कि तू नई बागड़ बना ले."
आदमी ने उसकी बात मान ली और सड़ी हुई बागड़ के स्थान पर नई बागड़ बना दी.वे उस आदमी तक पहुँचे जो पत्थर पर बैठा था और नहीं जानता था कि उसे कितनी देर यूँ ही बैठे रहना है. अन्द्रेइ ने उससे कहा:
"ऐ इन्सान, इतना भी लालची न बन: इस पत्थर पर और मुसाफ़िरों को भी बैठने दे."
अन्द्रेइ ने उस आदमी को पत्थर से हटाया और ख़ुद लड़की के साथ वहाँ बैठ गया. और वह आदमी ख़ुश-ख़ुश अपने घर भाग गया.उन्होंने कुछ देर आराम किया और आगे बढ़े, उस प्रदेश की ओर जहाँ अन्द्रेइ रहता था.और अब अन्द्रेइ लोगों से किसी भी चीज़ के बारे में नहीं पूछता, बल्कि लोग उससे पूछते हैं.
इस तरह अन्द्रेइ सबसे ज़्यादा होशियार हो गया.