अंधविश्वास
अंधविश्वास


रमेश अपनी दिनचर्य से परेशान रहता था। उसके जीवन मे कभी भी कोई अच्छा कार्य नहीं होता था। उसके बोस उसे आये दिन डाटा करते थे। रमेश की पत्नी का नाम रोशनी व बच्चे का नाम रोहन था। रमेश को लगता था की उसके भाग्य को अब कोई चमत्कार ही बदल सकता है। रमेश आए दिन लॉटरी की टिकट खरीदता था पर वह कभी लॉटरी जीता नहीं। वह तांत्रिक के पास भी जाता था पर उसका भी कोई फायदा नहीं होता था बल्कि पैसे की बर्बादी ही होती थी जिसके कारण रमेश की आर्थिक स्थिति भी कुछ ज्यादा अच्छी नहीं थी। उसका घर खर्च भी बड़े ही मुश्किल से चलता था। उसका बालक सरकारी स्कूल में पढ़ता था । रमेश तांत्रिको के उपचारों के लिए बेफिजूल खर्चा करता था जिसके कारण उसकी पत्नी भी उससे नाराज रहती थी।
रमेश अपने घर के होल में बैठे हुए थे तब रमेश ने बड़े ही उदास भाव से कहा - हे भगवान ! मेरा क्या होगा ? यह बात रमेश की पत्नी रोशनी सुन लेती है ओर वह रमेश से ऐसा कहने का कारण पूछती है तब रमेश उत्तर देते है कि आज दफ्तर में बोस ने फिर डाटा। यह बात सुनकर रोशनी ने रमेश को सांत्वना देने के लिए कहा कि यह तो बोस लोगो की आदत ही होती है बिन वजह अपने नोकरो को डांटना। तब रमेश रोशनी की बात का खंडन करते है और इसे भी अपने भाग्य का दोष ही मानते है तब रोशनी कहती है कि भाग्य का कोई दोष नहीं है। आप मेरी बात समझने का प्रयत्न करो तब रमेश कहते है कि तुम मुझे मत समझाओ। तब रोशनी बोली कि हर चीज़ कर्मो से अर्जित करी जाती है न कि भाग्य से। पर रमेश इसे भी किताबी बाते कहते है ओर वहां से चले जाते हैं।
अब रमेश परेशान होकर टी.वी. देखने बैठ जाता है और उसमें वह देखता है कि एक चमत्कारी बाबा का विज्ञापन आ रहा होता है और वही विज्ञापन सुबह के अखबार में भी आया था तब वह विज्ञापन वाली बात अपनी पत्नी रोशनी को बताता है तब उसकी पत्नी कहती है - अरे नहीं ! मत जाओ पहले ही इतने पैसे खराब हो चुके है। यह सब तो अंधविश्वास है पर रमेश हमेशा की तरह अपनी पत्नी की बात नहीं सुनता ओर् उस पंडित के पास चला जाता है।
अब रमेश उस तांत्रिक के पास चला जाता है तब तांत्रिक रमेश से समस्य के विषय मे पूछता है तब रमेश कहता है कि बाबा ! मैं अपनी नोकरी से अति परेशान हूँ। तब वह तांत्रिक कहता है कि तू अपनी नोकरी से कैसे परेशान है ? तो रमेश उत्तर देता है कि मेरा बोस आए दिन मुझे डाँटता रहता है तब वह तांत्रिक उसे अंगूठी देता है और कहता है की इस अंगूठी को अपने से अलग मत करियो। फिर रमेश तांत्रिक को दस हज़ार की दक्षिण देता है ओर वहां से चला जाता है।
अब उस तांत्रिक को अपना चमत्कार तो सत्य करवाना ही था सो उसने रमेश के बोस से जुगाड़ कर लिया ओर उसके बोस ने रमेश को डांटना बंद कर् दिया ओर् तो ओर उसका प्रमोशन भी हो गया।
यह बात रमेश ने जब अपनी पत्नी को बताई तब रोशनी समझ गयी की कुछ न कुछ तो गड़बड़ है ओर उसने फिर भगवान से प्रार्थना करी तब भगवान ने ऐसी लीला रची की एक दिन रमेश अपने दफ्तर में था कि तभी अपने आप उसके कंप्यूटर में cctv की फुटेज चालू हो गईं और अंत में रमेश अंधविश्वास से उबर आया।