हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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आवारा बादल (भाग 9) मीराबाई

आवारा बादल (भाग 9) मीराबाई

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गतांक से आगे 

32 माइल स्टोन रिजॉर्ट के एक वातानुकूलित कमरे में रवि और बेला दोनों बैठे थे और कॉफी पी रहे थे । दोनों के बीच में खामोशी की एक पारदर्शी दीवार थी । लगभग चालीस साल बाद मिले थे दोनों । कक्षा पांच में घटित घटना की चोट दोनों के दिल दिमाग में पक्के निशानात बना गयी थी । बेला के चेहरे से पश्चाताप के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे । उसकी आंखें भीगी हुई थी और गला रुंधा हुआ था । वह बहुत कुछ कहना चाहती थी मगर कह नहीं पा रही थी । गला साथ नहीं दे रहा था या होंठ , पता नहीं । शायद दिल में कोई गुबार सा उठ रहा थो जो आंखों के रास्ते नमी बनकर धीरे धीरे बाहर आ रहा था । लगता था कि यह खामोशी की दीवार चीन की दीवार की तरह मजबूत और अभेद्य है जिसे दोनों तोड़ नहीं पा रहे हैं । 


रवि ने ही बात शुरू की । "कितने सालों बाद मिले हैं हम लोग । क्या तुम यहां पर खामोशी के बगीचे में सैर करने के लिये ही आई हो या अपने अतीत के समंदर में डुबकियां लगाने ? मुझे तो लगता है कि तुम उस निलंबन की त्रासदी से अभी उभर नहीं पाई हो" । रवि ने विनोदपूर्वक कहा । 


बेला ने अपना सिर उठाकर सीधे रवि की आंखों में झांका । रवि की आंखों में अपने बचपन के एक साथी के लिए प्यार, अपनापन और आदर था । जो घटना कक्षा पांच में घटी थी उसका कोई नामोनिशान वहां पर शेष नहीं था । लेकिन बेला अभी भी उस तूफान की गिरफ्त में थी । उसने धीरे धीरे कहना शुरू किया "मैं किस तरह शुक्रिया अदा करू आपका, समझ में नहीं आ रहा है । मैंनें आपके साथ क्या किया और आपने मेरे साथ क्या किया ? मैं उस दिन की घटना के लिए अपने आपको आज तक माफ नहीं कर पायी हूँ । आपने चाहे मुझे माफ कर दिया हो लेकिन मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी । इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी आपने मेरे लिये जो किया है वह कोई भी नहीं कर सकता है । एक सच्चा दोस्त ही ऐसा कर सकता है लेकिन मैं एक बुरी दोस्त साबित हुई" । बेला की आंखों से गंगा जमना बहने लगी । 


"एक तो तुम ये बार बार गंगा जमना बहाना बंद करो । आजकल पानी की किल्लत वैसे भी बहुत ज्यादा हो गई है और तुम व्यर्थ ही पानी बहा रही हो वो भी मुफ्त में । बहुत तगड़ा बिल आता है यहां दिल्ली में पानी का । मैं ठहरा एक सरकारी मुलाजिम । भला कैसे भरूंगा इतना तगड़ा बिल" ? रवि ने वातावरण को हलका बनाने के लिये फुलझड़ी छोड़ी । बेला के चेहरे पर एक स्मित मुस्कान खेलने लगी । उसने आंसुओं को पोंछते हुए कहा "आप वैसे के वैसे ही हैं अब तक , मस्तमौला, हरफनमौला । बिल्कुल भी नहीं बदले " 


"कमाल है । आपको मेरी ये दाढ़ी मूंछें नजर नहीं आ रही हैं क्या ? तब तो ये नहीं थी । और हां , आंखों पर चढ़ा ये मोटा मोटा चश्मा भी कहाँ था उस समय ? क्या इतने बदलाव होने के बावजूद भी वे तुम्हें दिखाई नहीं दे रहे हैं" ? रवि अब अपने मूड में आ गया था । 

"आप भी ना बच्चों जैसी बातें करते हो" । अब बेला सामान्य हो चुकी थी । "मैंने तो सोचा था कि पता नहीं आप मुझे पहचान पाओगे या नहीं ? मेरा नाम भी शायद याद नहीं होगा आपको । और हो भी क्यों ? मैंने ... " 


रवि ने बीच में टोकते हुए कहा "फिर वही पुरानी बातें । अब छोड़िये भी उन्हें । उनको भी विश्राम करने दीजिए ना । कब तक अपने सिर पर उस बोझ को ढोती रहोगी तुम । जिंदगी बहुत बड़ी है, बेला जी । इसमें हर पल कुछ न कुछ घटता ही रहता है । उन सबको यदि याद रखने लगें तो क्या कोई जी पायेगा ? कल को भूलना ही बेहतर है हमारे लिये । हमें भविष्य की ओर देखना चाहिये ना कि भूतकाल की ओर । रात गई बात गई । बस, अब उस विषय पर एक शब्द भी नहीं" । रवि ने फुल स्टॉप लगा दिया था ।


अचानक बेला ने कहा "मैंने जो गिफ्ट आपको दिया है उसे खोलकर तो देखिये और बताइए कि कैसा लगा आपको ? " उसकी आंखों में जिज्ञासा थी ।


"अवश्य । अभी खोलते हैं" । रवि ने गिफ्ट खोलना शुरू किया । मीरा की मूर्ति देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया । कितनी प्यारी मूर्ति थी वह मीराबाई की । मीरा के चेहरे पर अपने आराध्य के प्रति समर्पण के भाव बहुत खूबसूरती के साथ उकेरे थे मूर्तिकार ने । रग रग भक्ति में डूबी लग रही थी उस मूर्ति की । 


"वाऊ । क्या शानदार मूर्ति है । कहाँ से ली " ? 

"हमारे पड़ोस में एक मूर्तकार रहता है । वह अपने आपको राजस्थान के मेड़ता शहर का रहने वाला बताता है जहां की मीराबाई थीं । बस, वही बनाता है ये मूर्ति । वह केवल मीरा की ही मूर्ति बनाता है और किसी की नहीं । कहता है कि मीरा ने अपनी भक्ति से भगवान को पा लिया था । उसके लिए मीराबाई प्रेरणा स्रोत हैं । वह मानता है कि भगवान तो भक्तों के वशीभूत हैं । उनमें वो ताकत है जो भगवान को भी विवश कर देती है उनके पास आने के लिए । इसलिए भक्त भगवान से भी बड़े होते हैं । उसने आज तक श्रीकृष्ण की भी मूर्ति नहीं बनाई है । मीराबाई को पूजता है वह । उसी की बनाई हुई है यह मूर्ति । कैसी लगी" ? 


रवि अपलक उस मूर्ति को देख रहा था । अचानक उसने बेला को देखा । बेला का चेहरा मूर्ति से मिलता जुलता सा लगा उसे । उसे बेला में मीराबाई नजर आने लगी । उसने इसे अपना वहम समझा । सिर को झटक कर अहसास किया कि वह अभी होशोहवास में है या बेहोश है । सिर झटकने से उसे हलका सा दर्द हुआ । अब उसे महसूस हुआ कि वह अभी होश में ही है । अगर वह होश में है तो फिर उसे बेला में मीरा क्यों दिखाई दे रही थी ? वह समझ नहीं पा रहा था । 


इतने में विनोद आ गया । "सॉरी सर, घर से फोन था" विनोद रवि से क्षमायाचना करते हुये बोला । 

"अरे अंग्रेज की औलाद , भारतीय ही बना रह , अंग्रेज मत बन । ये सॉरी वॉरी के चौंचले अंग्रेज छोड़ गये इस देश में । सोचा होगा कि कुछ तो निशानी के रूप में छोड़कर जायें । तो छोड़ गये 'सॉरी' और दफा हो गये यहां से । और हां, ये सर सर क्या लगा रखा है तूने" ? 


विनोद कुछ जवाब दे पाता इससे पहले वेटर आ गया था । बेला ने उससे वाशरूम के बारे में पूछा और वाशरूम चली गई । 


विनोद ने रवि को देखते हुये कहा "एक बात कहूँ रवि" ? 

"अब आ गया ना लाइन पे " रवि हंसते हुये बोला "चल बोल दे नहीं तो खामखां पेट में दर्द रहेगा तुझे" 

"बेला एकदम से बदल गई है । है ना" ? 

"लगता तो ऐसा ही कुछ है । पता नहीं क्यूँ मुझे तो उसका चेहरा इस मीरा की मूर्ति के जैसा लग रहा है" रवि ने मीराबाई की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए कहा । 

"सही कह रहे हो दोस्त" विनोद ने मूर्ति की ओर देखकर कहा । वो पहले वाली बेला अब कहाँ रही है ? वो षड़यंत्रकारी बेला एक भक्तन बेला बन चुकी है । अब वह अपने श्याम की मीरा बन गई है । 

"अपने श्याम की मीरा ? मतलब ?" 

"मतलब साफ है रवि । बेला ने शादी नहीं की । उसके मन मंदिर में उसके श्याम की छवि बसी हुई है । वो श्याम कौन है आज तक पता नहीं चल पाया है । किसी को नहीं बताया है उसने । घरवालों को भी नहीं । घरवालों से लड़ झगड़कर अपनी शादी नहीं होने दी उसने । कहती थी कि मैं तो श्याम की हो चुकी हूँ अब किसी और की नहीं हो सकती हूं । उसकी जिद के आगे घरवालों को भी झुकना पड़ा" । 


रवि कुछ सोचने लगा मगर उसे कुछ समझ नहीं आया । उसे लगा कि हो सकता है कोई लड़का जो बेला के साथ किसी स्कूल या कॉलेज में पढ़ा हो या उसके साथ काम करता हो , वह उसका श्याम हो ? उसे बेला के जीवन के बारे में बहुत ज्यादा पता भी नहीं था । इसलिए उसने विनोद से इस संबंध में और कुछ बताने के लिए कहा । 


विनोद कहने लगा "जहां तक मैं बेला को जानता हूँ , उसकी जिंदगी में और कोई नहीं है । मैं भी असमंजस में हूँ कि वह श्याम कौन है ? मगर आज तक पता नहीं कर पाया हूँ । बेला इस मुद्दे पर बात ही नहीं करना चाहती है " । 


इससे पहले कि रवि कुछ कहता, बेला वाशरूम से आ गई । बात वहीं खत्म हो गई । 


शेष अगले अंक में 



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