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Devendra Tripathi

Others

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Devendra Tripathi

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आषाढ़ की रात

आषाढ़ की रात

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चारो ओर घनघोर अँधेरा, बिजली चमक रही है और बादल गड़गड़ा रहे है, मानो बादल जमीन पर ही आने के लिए बेचैन है। अपनी बूढ़ी आँखों में एक नए कोठरी का सपना लिए, रमा अपने छप्पर वाली झोपड़ी में टपक रहे पानी की बूँदों को बर्तन में रोप (इकट्ठा) कर रही है। दिए की रोशनी को संभालती हुई रमा अपने अतीत के लम्हों में खो जाती है। आज के लगभग ३० साल पहले जब रमा इस गाँव में व्याह कर आई थी- 

दुल्हन आ गयी...... दुल्हन आ गई गाँव के बच्चे चिल्ला रहे थे, कि रमा डोली से पहली बार अपनी ससुराल को देखा।

एक गरीब मध्यम परिवार का खपड़ैल वाला घर, जो दो कमरे का था जिसमे एक आँगन भी था। जो जैसा था वैसे ही रमा ने अपनी जिंदगी में अपना लिया। पति सहदेव की तो मानो जिंदगी की हर मुराद पूरी हो गयी थी। सहदेव रमा को अपनी सिर आँखों पर रखते थे। पहली रात जब रमा, सहदेव से मिली- 

रमा अब तुम आ गयी हो मेरी जिंदगी में तो अब किसी चीज की ज़रुरत नहीं है, बहुत मेहनत करूँगा और तुम्हे हमेशा खुश रखूँगा, मेरा वादा है, तुमसे रमा!- सहदेव बोलता है।

रमा- शर्माते हुए! घूँघट में। जी! और मन में बहुत खुश होती है, कि उसके पति उसके बारे में इतना सोंच रहे है। सहदेव अपने रोजी रोटी के कामों में व्यस्त हो गया और रमा का मन भी नए घर में लग गया, ले देकर बूढ़े सहदेव के माँ पिता जी के अलावा घर में था ही कौन, इसलिए रमा को भी घर के काम करने के बाद समय मिल जाता था, उस समय में वो अपने बूढ़े सास ससुर की सेवा कर लेती थी। सहदेव के बूढ़े माँ पिता जी भी सुंदर सुशील बहू पाकर बहुत खुश थे, और रमा को सब बहुत प्यार करते थे।

एक दिन जब रात में रमा अपनी सास के पैरो में तेल लगा रही थी, तभी रमा को अचानक उल्टी होने लगी। रमा की सास को पता चल गया था कि कोई नन्हा घर में मेहमान आने वाला है, और उस दिन से ही रमा की सास ने अपनी बहू का पूरा ख्याल रखना शुरू कर दिया, देखते ही देखते रमा के अगले ६ सालों में तीन लड़के हो पैदा हो चुके थे।

समय के साथ बूढ़े हो चले सास ससुर भी अपनी अंतिम यात्रा को प्राप्त कर चुके थे। धीरे धीरे तीनों बच्चे बड़े होने लगे थे और रमा और सहदेव भी अपने उम्र के अगले पड़ाव की तरफ बढ़ रहे थे। अब तीन जवान बच्चे और दो पति पत्नी, काफी ख़र्च बढ़ चुके थे, जो सहदेव की छोटी कमाई से कहीं ज्यादा हो चुके थे, लेकिन घर की जिम्मेदारियों को निभाते दोनों पति पत्नी बच्चो की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ रहे थे।

बड़ा बेटा (जीवन) अब माँ पिता जी की दिक्क़ते समझने लगा था, और जल्द ही उसने गाँव के एक पेंटर के साथ काम करना शुरू कर दिया। जीवन को ये काम बहुत अच्छा लगने लगा, और अच्छे पैसे भी मिलने लगे। जिससे घर की समस्याएं धीरे धीरे खत्म होने लगी। सबका जीवन एक बार फिर पटरी पर आने लगा था।

अच्छा कमाता धमाता देख सहदेव ने जीवन की शादी कर दी और बहू आ गयी, रमा के दिमाग में आज भी अपनी सास के साथ बिताये वो हरदिन याद है, और वो यही सोंच रही है कि, बहू के आने के बाद उसकी जिंदगी आसान हो जाएगी।

जीवन अपनी पत्नी के साथ खुश रहने लगा, सहदेव और रमा ने अपना कमरा बड़ी बहू को दे दिया और दोनों बाहर सोने लगे। उधर दूसरा लड़का सपन भी अब बड़ा हो रहा था, अपने बड़े भाई को देख उसे भी ये काम करने का मन हुआ। जीवन ने सपन को भी अपने साथ लगा लिया, और अब दोनों बेटों के कमाने से सहदेव और रमा को थोड़ा आराम होने लगा था और अब सहदेव ने काम करना छोड़ दिया और घर पर ही थोड़ा बहुत काम करने लगे। थोड़े दिन बाद सपन ने अपने बड़े भैया और पिता जी से एक कमरा और बनवाने की बात कही, जिसपर सब लोग तैयार हो गए, और घर के सामने छप्पर वाली जगह पर एक नया कमरा बन गया। जिसे बाद में सपन की शादी के बाद उसे दे दिया गया।

नन्हे सबसे छोटे बेटे के पास कुछ अलग करने का रास्ता नहीं बचा था, सो वो भी भाईयों के साथ ही लग लिया। थोड़ा पैसे इकट्ठे हो गए तो तीनो भाइयों ने सोंचा कि खेती के लिए पानी की बहुत किल्लत होती है, तो एक पानी का पंप लगवा दिया जाए। इस बात से सहदेव बहुत खुश हुए और बेटों ने पानी का पंप घर से दस कदम दूर अपने खेत में लगवा दिया। अब तो नन्हे की शादी हो चुकी थी तो सहदेव और रमा दोनों खेत में झोपडी पर चारपाई डाल कर वहीं रहने का ईरादा किया , जिससे खेत और पंप की रखवाली भी हो जाएगी और घर में भी सब बेटे अपनी जिंदगी अच्छे से जी पाएंगे।

समय के साथ जीवन, सपन और नन्हे के बच्चे भी पैदा होते गए, सहदेव और रमा का नया घर तो मानो पानी पंप वाली झोपडी ही हो गयी थी, खाना पीना भी घर से वहीं पहुँच जाता था, सब घर के छोटे बच्चे दादा दादी से मिलने झोपड़ी में ही आ जाते थे, यही सब देख रमा और सहदेव का दिल लगा रहता था।

होते करते दिन बीतते गए, और पोते पोती भी सब बड़े होते गए, समय के साथ साथ सहदेव और रमा भी बुढ़ापे की ओर बढ़ चले थे। सब बच्चों को खुश देख सहदेव और रमा को भी अपनी जिंदगी सफल लगती थी। झोपड़ी बहुत पुरानी हो चुकी थी, सहदेव अपने लड़को को बुला इसे कोठरी बनवाने के लिए बात कह रहे थे, और सब ने यह निर्णय लिया कि इस बारिश में कोठरी बनवा लिया जायेगा।

अचानक एक दिन सहदेव की तबियत खराब हो जाती है और उन्हें अस्पताल ले जाया जाता है, अस्पताल से लौटकर तो सहदेव आते है, लेकिन अब वो उठ बैठ भी नहीं पाते है, जिससे रमा का काम थोड़ा और बढ़ जाता है। तीनो लड़को से भी रमा और सहदेव कुछ अलग से हो गए थे, क्योंकि वे सब अपनी दुनिया में मस्त हो चले थे, और रोज रोज की बीमारी और सहारे से तंग आने लगे थे। पोते पोती सब थोड़ा देर के लिए आ जाया करते थे तो सहदेव और रमा को सहारा मिल जाया करता था।

लगभग एक साल बाद सहदेव की अचानक रात में मृत्यु हो जाती है, और रमा को आज किसी का सहारा नहीं दिखता है। अब तो रमा के पास इतना साहस भी नहीं था कि वो अपने मन की बात किसी से कह सके। पिता के सामने किये हुए वादे उनके क्रिया कर्म के खर्चों में निपट गए।

आज सहदेव की मृत्यु हुए दो साल हो गए, और रमा की बूढ़ी आँखे आज भी कोठरी का इंतज़ार कर रही है, जिससे ये आषाढ़ की रात दुबारा वापस न आए।


                                


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