STORYMIRROR

Anshu sharma

Children Stories

4  

Anshu sharma

Children Stories

आशियाना

आशियाना

7 mins
784

आशियाना(वसुधैव कुटुम्बकम)


 आप इतनी जल्दी ऑफिस से वापस आ गए? देविका ने सूर्य प्रकाश से पूछा। अरे हां! कुछ खाने को है क्या? रास्ते में एक बूढ़ी औरत को उसका बेटा सड़क पर छोड़ गया। ओहो आपका अब यही काम हो गया है कम से कम 10 लोगों को उठाकर घर ले आते हो ।देविका ने सूर्यप्रकाश की बात पूरी नही होने दी। थोड़ी देर के लिए लाया हूँ ।बाकी वृद्धाश्रम में व्यवस्था करवा दूंगा। तुम खाने को कुछ हो तो बताओ ?नहीं तो, मैं बाहर खिला देता हूं।और कोई पूरानी साड़ी हो तो वो भी, इनकी साड़ी फटी हुई है।

 मुंह बनाते हुए देविका रसोई की तरफ बढ़ गई और वहां से पराठे और गोभी की सब्जी और चाय लेकर आई।

 देखा तो एक बुजुर्ग महिला कुर्सी पर बैठी हुई थी ।झटके से खाने की प्लेट और साड़ी  मेज पर रखकर वह अंदर चली गई। अरे सुनो तो सूर्यप्रकाश ने आवाज दी पर सूर्य प्रकाश की बात देविका ने नजरअंदाज करके कमरे में निकल गई। सूर्य प्रकाश ने बड़े आराम से उस बूढ़ी औरत को खाना खिलाकर वृद्धाश्रम छोड़ दिया। कुछ दिन के बाद ऑफिस की मीटिंग के लिए, वह ट्रेन से जा रहा था ट्रेन में एक औरत और एक आदमी बहुत जोर जोर से रो रहे थे। बुजुर्ग बहुत थे। सब ने बताया कि इनके बच्चे इन्हें ट्रेन में बैठा कर चले गए हैं ।सूर्य प्रकाश से रहा नहीं गया और वह अगले ही स्टेशन उन लोगों को लेकर उतर गया। पुलिस स्टेशन में उसने रिपोर्ट लिखाई और उन दोनों को कुछ ब्रेड चाय खिलाकर वृद्ध आश्रम छोड़ आया। सूर्य प्रकाश घर लौटा तो देविका बुरा भला कहने लगी आ गए अपना समाज कार्य करके! घर के लिए तो आपको टाइम नहीं है। जब देखो बूढ़े बुजुर्गों के पीछे लगे रहते हो। बस यही करना है तो घर में रहने की क्या जरूरत है? कल रात कहाँ थे अरे किसी को ट्रेन में कोई छोड़ गया था तो वृद्धाश्रम में जगह नहीं थी तो वह ढूंढने में ही मेरी सारी रात निकल गयी। आपको अपने परिवार की भी कोई चिंता है कि नहीं? हमारे लिए तो आप कभी कुछ नहीं सोचते ।देखो देविका मैं वैसे ही बहुत थका हुआ हूं ।तुम चाय और मुझे कुछ खाना दे सकती हो तो बोलो? तुम अपने आप इतनी काबिल हो कि अपने आप सामान बच्चों की देखरेख कर सकती हो ।पर वह जो बूढ़े मां बाप जिनको रास्ते में कोई छोड़ गया है उनका अगर कोई नहीं करेगा तो क्या होगा ?कुछ नहीं होगा आप ज्यादा सोचते हो सारी दुनिया में सबका ठेका थोड़ी हमने ले रखा है। तुमसे तो बातें करना ही बेकार है ।मेरे सिर में दर्द हो रहा है तुम विक्स मुझे लाकर दे दो ।खाना खाकर सूर्यप्रकाश विक्स लगा कर सो गया। सुबह ऑफिस जाना था।

 बहुत परेशान हो? सूर्य प्रकाश की दोस्त ने पूछा। हां मनोज बहुत दिमाग परेशान है ।कल का किस्सा तुम्हें बताता हूं और उसने कल की अगले दिन की सारी बात मनोज को बताई ।यार देख, भाभी भी का कहना भी ठीक है तू इतना भावुक है, तेरा दिल इतना कमजोर है ,पर तू ऐसे ही करेगा तो घर की तरफ कौन ध्यान देगा ?यार घर में मेरे सब सही है सब अच्छे से खा पी रहे हैं ।बच्चे बड़े हो गए हैं कॉलेज जा रहे हैं। मैं शुरू से ही कुछ ना कुछ ऐसा दान पूर्ण या ऐसा वृद्धाश्रम में लोगों को पहुंचाता रहा हूं। आज की बात नहीं है देविका समझती नहीं ।शादी को 15 साल हो गए अब मैं क्या कहूं ?घर में झगड़े भी तो नहीं होने चाहिए ।तू ही बता मेरा घर जाने का भी मन नहीं है क्योंकि देविका फिर शुरू हो जाएगी ।


कुछ महिने बीते एक दिन किसी ने सूर्य प्रकाश को फोन किया आप सूर्यप्रकाश बोल रहे हैं मैं आप ही के ऑफिस से बोल रहा हूं। मैं रास्ते में हूं और यहां पर कोई बूढ़ा आदमी बहुत परेशान है। उसको कुछ याद नहीं आ रहा शायद उसकी याददाश्त भी काम नहीं कर रही है ।कुछ लोगों का कहना है कि एक पति और पत्नी आए थे कार से, इनको यहां पर बैठा कर चले गये हाथ में एक सूटकेस हैअच्छे घर से लगते हैं। आपने पिछली बार ऑफिस में बताया था ।ना किसी को व्द्धाश्रमछोड़ा है तो क्या आप इनकी भी सहायता कर सकते हैं ?सूर्य प्रकाश तुरंत वहां पहुंचा और उसके साथ उनको वृद्धाश्रम में छोड़ कर आया और घर जब लौटा इस बात पर देविका खूब जोर जोर से चिल्ला रही थी। ना घर आने का आपको टाइम है, पूरा वृद्धाश्रम अपने घर में ही क्यों नहीं खोल लेते? ना कहीं जाना पड़ेगा ।घर के घर उनकी देखभाल करना ।नौकरी की तो जरूरत ही नहीं है। लगता है नौकरी तो तुम्हें कोई निकाली देगा । कि तुम कभी देर से जा रहे हो, देर से आ रहे हो ।देविका सब जानते हैं मेरे बारे में ,आज की बात नहीं है मैं पुराना हूं और अपना काम पूरे समय पर करता हूं। उससे मेरी कंपनी को कोई परेशानी नहीं है उनको परेशानी नहीं है पर मुझे है ।आज मैं अपने बच्चों को लेकर यहां से जा रही हूं जब आप घर में आते ही नहीं हो देर से आते हो और मैं अपने मायके रहने के लिए जा रही हूं। तुम कैसी बाते कर रही  ?दूसरों की सेवा करने में कोई पत्नियां सहयोग देती हैं और तुम मुझे सहयोग के बिना....बात काटते हुए देविका बोली , मुझे कुछ नहीं सुनना मैं र बचँचे जा रहे हैं और देविका और बच्चों को बहुत समझाया पर, बच्चों को लेकर को निकल चुकी थी सूर्यप्रकाश बहुत रोए ,बहुत उदास रहे पर उनका वही सेवा भाव बना रहा ।मनोज और उनके कुछ साथी जो कि भावुक थे। उनके साथ मिलकर उन्होंने बात कि हम कुछ पैसे इकट्ठे करके क्या घर लेकर दे सकते हैं ?क्योंकि ऑफिस से वृद्ध आश्रम के लिए काफी दूर और अब आसपास के आश्रम में जगह भी नहीं है ।आफिस वालो ने मिलकर किया और एक बड़ा सा घर किराए पर ले लिया ।नाम रखा "आशियाना"जिनको वह नहीं रख पा रहे थे उन लोगों को भी वहां पर खाने पीने की व्यवस्था करके छोड़ दिया और धीरे-धीरे वह दो से चार और चार से छह और करते-करते हजारों की संख्या में आ गए और मनोज सेवा भाव के काम में ही लग गया इधर के देविकाको भैया भाभी की तरफ से कोई स्नेह ना ,मिलने के कारण वह अपने बच्चों को लेकर अलग कमरे लेकर रहने लगी। उसने सूर्य प्रकाश के कई बार मनाए आने पर भी वह लौट कर नहीं गई और उसके बच्चों ने भी उसने जैसे तैसे बच्चों की शादी करी और बच्चों ने उसका ध्यान नहीं रखा ।जवाब देने लग गए देविका बच्चों के पास होती हुई भी ,ना के बराबर थी एक तरह से समझ लिया जाए तो वह बोझ बन चुकी थी उनके लिऐ।


वह सोचने लगी सूर्य प्रकाश कितने अच्छा काम कर रहे थे? और मैंने उनका सहयोग नहीं दिया। आज मैं अपने बच्चों के पास होते हुए भी उनके लिए एक बोझ हूँ । बस फर्क इतना है कि सूर्य प्रकाश जिनकी सहायता करते थे वह सड़क पर होते थे और मैं अपने घर पर ही बोझ बनकर बच्चों की जिंदगी मे हूँ।देविका एक पार्क में बैठी हुई थी शाम को उदास मन से तभी सूर्यप्रकाश किसी काम से उधर से निकले और उन्होंने देविका को देखा देविका थोड़ी देर तो देखती रही और खूब तेज तेज रोने लगी ।सूर्य प्रकाश ने पूछा कैसी हो ?देविका ने कहा कि कैसी हो सकती हूं आपके बिना, शुरू में तो अहम नहीं मुझे जगह नहीं दी और आज मेरे बच्चे मुझे बोझ समझते हैं। मेरी कुछ परवाह ही नहीं ,बस खाना मिल जाए । क्या मैं आपकी जिंदगी में वापस आ सकती हूं ?सूर्य प्रकाश मुस्कुराए सुबह का भूला अगर शाम को आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। मैं तो कितनी बार गया ?तुम्हें मनाने और तुमने मुझे पलट कर देखा भी नहीं। तुम देखोगी चलोगी मेरे साथ वह वृद्ध आश्रम जहां पर मेरे कितने मां-बाप इकट्ठे हो गए हैं। जब देविका गई तब सूर्य प्रकाश आश्रम में ले गए और उसमें हजारों लोग वहां पर थे। बुजुर्ग कुछ अपने हिसाब से काम सीख रहे थे ।कोई कंप्यूटर जानता था या कोई हाथ का काम उसी से वह गुजर-बसर अपना-अपना कर रहे थे। देवका की आंखें भर आई और वह बोली आज मुझे समझ में आ गया है इन लोगों की सेवा करके कितना सुकून आप प्राप्त करते होंगे ?वासुधैव कुटुंबकम यह बात मुझे आज समझ में आई है और इसे समझने में मुझे ना जाने कितने साल लग गए ?आपसे दूर होकर समझ आ गया ।मुझे माफ कर दीजिए। सूर्य प्रकाश ने उनके कंधे पर हाथ रखकर, मुस्कुराते हुए कहा आओ चलो !तुम्हें कुछ भूख लगी होगी, कुछ खाना खाते हैं ।चलो समुद्र के किनारे बैठते हैं थोड़ी देर के लिए पुरानी यादें ताजा करते हैं।

दोनो मुस्कुराहटो के साथ जा रहे थे। सोचकर पता.नही शाम को कौन माता पिता को संभालने को मिल जाऐ।



Rate this content
Log in