Sheikh Shahzad Usmani

Children Stories Tragedy Inspirational

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Sheikh Shahzad Usmani

Children Stories Tragedy Inspirational

आख़िर क्यों? (लघुकथा)

आख़िर क्यों? (लघुकथा)

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हर बार की तरह इस बार भी दीपावली के अवसर पर जाधव तलैया के पास की झुग्गी बस्ती में जितना धार्मिक उल्लास था, उतना ही आर्थिक सदमा। न रौशनी करने की इच्छा हो रही थी और न ही छुटपुट आतिशबाजी की भी गुंजाइश रह गई थी। उस झुग्गी बस्ती के जितने भी बच्चे किसी तरह पढ़ाई-लिखाई से जुड़े रहे, वे सब मिलकर सब बच्चों को समझा रहे थे दीपावली मनाने का सही सादगी भरा उद्देश्यपूर्ण तरीक़ा। उनका नेतृत्व कर रही थीं हितेक्षा और उसकी पड़ोसन दीक्षा भाभी। दोनों ने छोटी दीवाली के रोज़ से ही बस्ती के बच्चों को एकत्रित कर आतिशबाजी और पटाखे बनाये जाने के तरीक़े, उनमें प्रयुक्त होने वाले रसायनों और उन्हें जलाते, छोड़ते या फोड़ते समय होने वाले प्रदूषण के तौर-तरीक़े प्रयोग दिखा-दिखा कर समझाना शुरू किया :


"देखो... जिन रसायनों के बारे में अपने प्यारे दूरदर्शन और आकाशवाणी ने हमको समझाया था, वे इस तरह हवा की ऑक्सीजन से मिलकर रंगीन रौशनी या आवाज़ पैदा करते हैं और कुछ इस तरह घातक धुआँ वातावरण में यूँ फैलता जाता है!" दीक्षा भाभी ने आतिशबाजी की एक लड़ी छोटे-छोटे बच्चों की जिज्ञासा शांत करते हुए उनके ही सामने जला कर दिखाते हुए कहा।


"तो फ़िर त्योहारों और शादियों में लोग इनका क्यों इस्तेमाल करते हैं भौजी?" लल्लन ने गमछे से अपना मुँह ढ़ाँकते हुए पूछा।


"बहुत सी वजह हैं! परम्परा, रीति-रिवाज़, ख़ुशी का इज़हार और नकल का दस्तूर... और कभी-कभी होड़बाज़ी या दिखावा!" हितेक्षा ने छुटकी को धुएं से दूर कर गोदी में उठाते हुए कहा, "आओ, अब हम दीयों और बातियों, तेल और घी के बारे में प्रयोग करके देखते है। कल हम दीये ही जलायेंगे और घर में मीठी और नमकीन स्वादिष्ट चीज़ें बनवा कर मिलजुलकर कर खायेंगे।"


फ़िर सभी बच्चे दीक्षा भाभी की झुग्गी के सामने की खुली जगह पर पहुंच गये। हितेक्षा ने दीक्षा भाभी की झुग्गी में गोबर के बने और कुम्हार से ख़रीदे मिट्टी के दीयों को कतारों में जमा कर बातियों को जला दिया। बच्चों को स्पष्ट रूप से पटाखों और आतिशबाजी और दीयों में अंतर समझा दिया गया।


फ़िर सभी बच्चे अपनी-अपनी झुग्गी की तरफ़ चल पड़े। केवल हितेक्षा रह गई थी वहाँ दीक्षा भाभी के पास।


"हमारे यहाँ के बच्चे कितनी जल्दी सब समझ कर सामंजस्य बिठाल लेते हैं! पैसे वालों के बच्चे क्यों नहीं, जानकारी तो उनको भी दी जाती है न?" हितेक्षा ने दीक्षा से पूछा।


"क्योंकि उनके पेट भरे हुए होते हैं या भर दिये जाते हैं! .... और दिमाग़ को फ़ितरतों और फ़ितूर की खुराक़ जन्म से ही दी जाती है!" दीक्षा का जवाब हितेक्षा के कानों में प्रतिध्वनियाँ कर रहा था।



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