आइना....
आइना....
आज सुबह क्या हुआ पता नहीं पर घर के सब सदस्य अपने अपने काम पे निकल जाने के बाद अनीता अकेली अपनी घर की खिड़की के पास बैठके चाय पीते पीते अपनी अतीत मे खो गयी. शायद आज उसको अपनी बेटी सुनीता की बातों ने ये सब करने मे मजबूर कर दिया!
अनीता प्रधान एक गृहिणी है. उनके पति अशोक प्रधान सरकारी अधिकारी है. उनके एक ही संतान और प्यारी सी बेटी सुनीता है, जो अभी अभी अपनी पढ़ाई ख़तम करके एक निजी संस्था मे नौकरी करती है.
आज सुबह सुनीता की शादी के बारे मे जब अशोक बात कर रहे थे तब अनीता ने कहा की शादी के कुछ फैसले लेने से पहेले एक बार सुनीता से बात करना अच्छा होगा. और दोनों ने सुनीता को बड़े प्यार से बोले, "बेटे अब तो तुम नौकरी करने लगी हो और हम सोच रहे थे की तुम्हारी शादी अगर हो जाये तो अच्छा होगा. इसमें अगर तुम कुछ कहना चाहती हो तो बोलो हमें खुशी होंगी."
सुनीता थोड़ी घबराई और बोली, "अभी मुझे शादी नहीं करनी है. एक साल के बाद मे बोलूंगी."इतनी बोल के वो उठके चली गयी.
ये बात सुनके अशोक भी थोड़ी परेशान हुए और अनीता को बोले,"कियुं एक साल बोलती है. क्या वो किसी को पसंद करती? थोड़ा तुम उससे बात करना ". ये बोल के अशोक भी अपने काम मे निकल गये. तबसे अनीता सोच मे पड़ गयी और चाय की प्याला हाथ मे ले के अपनी अतीत मे खो गयी.
वो तब की बात है जब नयी नयी अनीता कालेज मे गयी थी. उसके परिबार मे सब बहुत संस्कारी थे और रीती रीवाज का बहुत आदर करते थे. कालेज मे पढ़ाई के समय अनीता की मुलाक़ात रमेश से हुई थी. रमेश उससे दो साल बड़े थे और वो सीनियर भी थे. उनकी पहेली मुलाक़ात लाइब्रेरी मे हुई थी, जब वो अनीता को कैसे किताब लेते हैं, उसके बारे मे समझाया था. अनीता को उनकी बातें बहुत अच्छी लगी थी. फिर धीरे धीरे मुलाकाते बढ़ती गइं. कभी कैंटीन मे तो कभी बगीचे मे. ऐसे कुछ मैंने के बाद दोनों के बिच दोस्ती हो गई और वो दोस्ती फिर देखते देखते प्यार मे बदल गया. दोनों चुपके चुपके कालेज के बाद फिर पार्क मे मिलने लगे. कभी कभी वो रमेश की बाइक के पीछे बैठके शहर की बाहर नदी किनारे तक जाती थी. वहाँ दोनों घंटो बड़ी प्यार से बातें करते थे. रमेश एक अच्छा छात्र था. उनका प्यार इतने गहरा होने लगा कि दोनों मिलके बहुत सुन्दर सपने देखने लगे थे. अनीता जब रमेश के साथ होती थी, वो सब कुछ भूल जाती थी.
देखते देखते उनकी प्यार को दो साल हो गया. रमेश को और पढ़ाई करने के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा. अनीता बहुत दुखी हो गयी. पर रमेश उससे मिलने आता था और दोनों एक साथ बहुत समय बिताते थे. अनीता की दोस्त रानी की चचेरा भाई रमेश था. अनीता के नाम ख़त रानी के पास रमेश भेजता था, जो अनीता को रानी दे देती थी. ऐसे मे एक दिन गलती से एक ख़त अनीता की माँ के हाथ लग गया और घर मे एक बड़ा हंगामा हुआ. अनीता का कालेज जाना बन्द करा दिया गया. अभी उसकी शादी करने की तैयारी मे सब लग गये. अनीता के प्यार और इच्छा का कोई ध्यान नहीं दिया. कोई उससे पूछा भी नहीं. और अनीता भी डर के मारे किसी को कुछ कह नहीं सकी. इधर रमेश से भी कोई सम्पर्क हो नहीं पा रहा था. वो बेबस थी. मजबूरन उसे घरवालों की बात मान के अशोक के शादी करनी पड़ी. पर अभी तक उसके प्यार, उसकी चाहत, उसका वो दर्द, उसकी वो बेबसी, सब कुछ अनीता के मन का आइना दिखा रहा था. अनजाने मे अनीता की आँखों से आंसू बह रहे थे. जीबन के जो सपने वो और रमेश मिलके देखे थे वो तो अधूरा रह गया.
अब अनीता तय कि वो अपनी बेटी से बात करेंगी. अगर वो किसीको प्यार करती है तो उसकी प्यार को पूरा करने की जिमिदारी वो लेगी.अपने जैसीउसको बनने नहीं देगी. आज उसकी अतीत के आईने ने अनीता की हिम्मत को और बढ़ा दिया. उसे अब थोड़ा अच्छा लगा और खुशी हुई शायद वो अपनी बेटी सुनीता के जीवन को खुशी से सजा सकती है.
और मन ही मन मे अपनी अतीत के आईना को शुक्रिया बोली....