आहार
आहार
मेरे घर के सामने वाले छत पर एक कौआ कहीं से आया वह अपनी चोंच में कुछ दबाएँ हुए था। छत पर बैठते ही उसने अपने दोनों पैरों के नीचे मजबूती से उसे पकड़ कर नोच-नोच कर खाने लगा, ध्यान से देखने पर पता चला कि वह एक मरी हुई छोटी चिड़िया थी। मेरी छत की रेलिंग पर बैठी दूसरी चिड़िया उसे बड़े ध्यान से देख रही थी। मैंने पूछा “क्या तुम्हें भी खाना है?”
“ नहीं नहीं! जिसे वह नोच नोच कर खा रहा है वह मेरी मित्र थी!”
“वोह हो! तो तुम्हें बड़ा बुरा लग रहा होगा, मैं अभी उसको भगा देती हूँ।”
“नहीं नहीं खाने दो उसे! कल के तूफान में जान गवाई उसने। मैं खुश हूँ कि मेरी दोस्त मरकर भी किसी के काम आई। उस भूखे का पेट तो भरा।
बहुत सौभाग्य की बात है कि मरकर किसी का आहार बनी ना कि किसी के आहार के लिए मरी!"
मैं भी उस चिड़िया की बात सुन सोच में पड़ गई कि धन्य है यह जीवन जो मर के भी काम आए कुछ जीव तो जीते जी भी किसी के काम नहीं आते और मरने पर जल्द से जल्द उन्हें जलाना या दफनाना पड़ता है।