Niru Singh

Children Stories

4  

Niru Singh

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तूफान

तूफान

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"तूफान आने वाला है मैं खाने के लिए कुछ और दाने लाता हूं" कबूतर ने कबूतरी से कहा।

" नहीं ! नहीं ! बाहर जाने की जरूरत नहीं है जितना है काफी है!"कबूतरी ने कबूतर को रोकते हुए कहा।

 "मैं जल्द ही वापस आ जाऊँगा अभी तूफान में समय है!" कहते हुए कबूतर बंद घर के गुसल खाने के जीने से उड़ता हुआ बोला।

 कबूतरी पीछे से चिल्लाई "ज्यादा दूर न जाना!" और कबूतरी अपने अंडों पर बैठ गई।

काफी देर हो गई कबूतर ना लौटा और आसमान में काले बादल छा गए हवा भी शुरू हो गई कबूतरी बार-बार जीने के बाहर अपनी गर्दन निकाल निकाल कर कबूतर की राह देखती!देखते ही देखते तूफान शुरू हो गया, जोरो की हवा चलने लगी और तेज बारिश भी होने लगी, हवा इतना तेज था कि जीने में लगा कांच का पल्ला नीचे गिरा और जीने का मुँह बंद हो गया,कबूतरी उसे पूरे जोर से धक्का मारकर उठाने की कोशिश कर रही थी कि कबूतर अंदर कैसे आएगा? पर हवा इतना तेज था कि कबूतरी थक गई पर काँच को हिला ना पाई। कबूतरी हताश और मायूस हो पूरी रात अपने अंडों पर बैठकर रोती रही कि शायद इस तूफान ने कबूतर को उससे छीन लिया!

 सुबह की पहली किरण के साथ कबूतरी ने फिर काँच को धकेलने का प्रयाश शुरू किया तूफान थम चुका था तो काँच थोड़ा खुल गया।

 वह अपने अंडों को छोड़कर कबूतर को ढूंढने भी नहीं जा पा रही थी बार-बार जीने से बाहर जाती फिर अंदर आती दोपहर होते-होते कबूतरी ने उम्मीद छोड़ दी उसके लौटने की भूखी प्यासी कबूतरी थक चुकी थी,वह फिर आकर अपने अंडों को गले लगा रोने लगी।

तभी फड़फड़ाने की आवाज आई और कबूतरी समझ गई यह तो मेरे कबूतर की आवाज है कबूतर जीने में आ घुसा वह बुरी तरह से घायल था पँख भी कहीं-कहीं से निकले हुए थे।

 उसे देख कबूतरी खुशी से रोनेलगी "कहाँ थे तुम सारी, रात ठीक हो तुम?"

 "हाँ!हाँ!ठीक हूँ सही सलामत वापस आ गया यह कम है क्या, लो पहले कुछ खा लो मुझे पता है तुमने कुछ खाया ना होगा" कहते हुए कबूतर ने कुछ दाने कबूतरी के सामने रखे।

पहले यह बताओ "तुम कहां थे तूफान में?" कबूतरी ने पूछा

"क्या बताऊँ शहरों में दूर-दूर तक बस ईट पत्थर के दीवार ही दीवार है! यहाँ खेत खलिहान का तो नाम भी नहीं है और लोग बचा हुआ खाना या कचरा भी डस्टबिन में रखते हैं, इसलिए खाने की तलाश में दूर तक निकल गया था! वापस आते वक्त बादल की वजह से अंधेरा हो गया सभी मकान एक जैसे दिखते हैं तो मैं अपने घर का रास्ता भूल गया मैं दीवारों से टकरा- टकरा कर गिर पड़ा !"

" तूम कहाँ थे रात भर!" कबूतरी ने आँखों में आँसू लिए हुए पूछा।

 "आस-पास कोई पेड़ भी नहीं था,जहाँ मैं सहारा लेता,तभी तूफान की वजह से एक कच्चे मकान का कुछ हिस्सा उड़ गया तो मैं वहीं से उस मकान के अंदर घुस गया और घर के लोग एक कोने में दुबके थे तो मैं भी वही दूसरे कोने में चुपचाप पड़ा रहा! हमारा घर उजाड़ जिन्होंने अपना घर बनाया तूफान से बचाना पाए और आते वक्त वहाँ बिखरे पड़े सामानों में से कुछ दाने तुम्हारे लिए लेते आया।"

 कबूतरी रो पड़ी "अंडे से बच्चे निकल आएँ तो हम यह दीवारों का शहर छोड़ किसी खेत खलिहान के पास अपना घोंसला बनाएंगे!"

 कबूतर ने भी हामी भरते हुए सर हिलायाऔर दोनों बड़े प्रेम से लाया हुआ दाना खाने लगे।


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