कक्कू और लाली
कक्कू और लाली
भुवन के खेत के पास एक पुराना और घना पीपल का पेड़ था,भुवन जब खेतों में काम करके थक जाता तो उसी पेड़ के नीचे आराम करता था। पेड़ पर कुक्कू कौआ ने अपना घोंसला बना रखा था और पेड़ के सबसे ऊपर की डाली पर कोयल रोज आ कुहूकती थी।कुक्कू समझ गई थी कि यह अंडे देने वाली है और यह अपने स्वभाव के अनुसार मेरे अंडों को गिरा अपने अंडों को रख चली जाएगी।कुक्कू बहुत परेशान थी। वह अपने अंडों को छोड़ कहीं जाती नहीं, भूखी प्यासी घोसले में बैठी रहती।
कुक्कू ने सोचा।
"इस तरह से तो मैं भूखी प्यासी ही मर जाऊंगी अपने बच्चों को क्या खिलाऊंगी!"। बहुत विचार करने के बाद उसे एक उपाय सुझा "क्यों न शत्रु को मित्र बना लिया जाएँ तो खतरा कम हो जाएगा।"यही सोच उसने कहा "अरे लाली कैसी हो?"
लाली तो पहले चारों तरफ देखने लगी "मुझे किसने पुकारा? "
कुक्कू की तरफ देखते हुए कहा "अच्छी हूँ बहन "!
कुक्कू उड़ के लाली के पास वाली डाली पर जा बैठी,लाली शर्मिंली स्वभाव की थी।
" लाली तुमने अंडे कहाँ दिए इस बार "? कुक्कू ने पूछा।
लाली ने बड़े आश्चर्य से देखा और सकुचाते हुए बोली "अभी नहीं दिया,घोंसला नहीं बना पाई जगह ढूँढ रही हूँ "!
"अच्छा! बरसात भी शुरू होने वाली है तो कब बनाओगी"।कुक्कू ने आश्चर्य से कहा।
"एक काम करो लाली मेरा घोंसला तो इसी पेड़ पर है उसमें मेरे अंडे भी है तुम मेरे घोसले में ही दे दो अंडे!अपने अंडों क़ी देख-भाल तो करूँगी तुम्हारे अंडों की भी हो जाएगी "।
"अच्छा!तुम्हें बुरा नहीं लगेगा"। लाली ने बड़े आश्चर्य से पूछा।
"नहीं!बहन अंडे ही तो है फूटने से तो अच्छा है कि दोनों के अंडे साथ ही रहें,जब बच्चे बड़े होंगे तो तुम उन्हें ले जाना और हम दोनों मिलकर उनकी देखभाल कर लेंगे "। बड़ी सरलता से कुक्कू नें कहा।
लाली नें भी हामी भरते हुए कहा" ठीक है ज़ब तुम्हें कोई असुविधा नहीं तो मुझे क्या होगी "।
फिर क्या था कुक्कू ने घोसले में अपने अंडों को थोड़ा किनारे किया और लाली आ बैठी।
" तुम जब तक अंडे दोगी मैं कुछ खाने का इंतजाम करके आती हूँ।"
कुक्कू के मन में डर तो था कि कहीं वह मेरे अंडों को गिरा ना दे,पर सब कुछ वह मित्रता के भरोसे छोड़ भुवन के खेत की तरफ उड़ी।
लाली बहुत खुश थी कि इस बार "उसे बिना मेहनत और कोई नुकसान किए बिना ही आराम से अंडे देने को मिल गया।हर बार चोरी-छिपे देना पड़ता था और कौए के अंडे को गिराते वक्त उसके मन को दुख होता था। जिसके पर्याश्चित में वो अपने अंडो को सेव भी नहीं पाती थी।"
कुक्कू जब आई तो घोंसले में अंडे थे पर लाली ना थी वह डर गई कि "कहाँ गई अंडों को अकेला छोड़ कर"।
"अरे! चिंता ना करो मैं यही हूँ "। ऊपर की डाली से लाली बोली।
दोनो सखी हँस पड़ी, हँसी खुशी दोनों अंडों की रक्षा करती और एक साथ रहती ।
एक दिन लाली बहुत खुश थी,वह गा रही थी "कुहू-कुहू-कुहू" तभी भुवन पेड़ के नीचे बैठा आराम कर रहा था,लाली की कुहूक सुन उसकी आँख लग गईं। कुक्कू भी अपने घोसले में बैठी लाली की मधुर आवाज का आनंद ले अंडो को सेव रही थी। तभी उसकी नजर पेड़ के नीचे पड़ी,भुवन के पैर के पास एक काला साँप रेंग रहा था यह देख कुक्कू ने लाली को बुलाया "भुवन को जगाओ वरना वह साँप उसे काट लेगा "!
लाली जोर-जोर से कुहूकने लगी,लाली की आवाज सुन भुवन और गहरी नींद में चला जा रहा था और साँप धीरे-धीरे उसके पैरों के नजदीक जा रहा था। दोनों सखी परेशान थी कि भुवन को जगाएँ कैसे कि वह साँप से बच सकें?
तभी कुक्कू नें कहा "रुको मैं कोशिश करती हूँ " और वह अपनी कर्कश आवाज में जोरों से "कॉव-कॉव-कॉव"करने लगी।
कौवे की कर्कश आवाज सुन भुवन की आँख खुल गई और गुस्से में भुनभुनाता हुआ उठा,ज़ब नजर साँप पर पड़ी तो "अरे! यह कहाँ से आया" और साँप से दूर हटा।
ऊपर कुक्कू और लाली बहुत खुश हुई।
साँप को दूर भगा सचेत हो भुवन भी थोड़ी देर बाद पेड़ के नीचे आ दोनों की तरफ मुस्कुराते हुए देखा मानो दोनों को धन्यवाद कह रहा हो।