"99 से 100 कभी नहीं होते है।"
"99 से 100 कभी नहीं होते है।"
सत्यनारायण बहुत चतुर बुद्धिमान और लालची व्यक्ति था। दस साल गांव से दूर रहने के बाद शहर में इतना धन कमाता है कि वह पूरे गांव का सबसे अमीर आदमी बन जाता है।
दस साल बाद वह शहर से अमीर होकर अपने गांव आता है।
गांव का एक व्यक्ति अपनी बेटी की बहुत धूमधाम और शान शौकत से शादी करता है। इतनी बड़ी शादी देखकर लालची सत्यनारायण अपने मन में विचार करता है कि अगर सारे गांव की धन दौलत जमीन जायदाद जा को जोड़ा जाए तो जितनी मेरे पास धन दौलत है, उसकी दस गुना होगी।
या अगर मैं अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके गांव वालों की सारी धन दौलत अपने नाम कर लूं तो जो धन मैंने दस वर्ष में कमाया है, वह मैं सारे गांव वालों को बेवकूफ बनाकर दस दिन में कमा लूंगा।
वह सारे गांव को लूटने की एक तरकीब सोचता है और गांव वालों के सामने एक प्रस्ताव रखता है कि "मैं गांव में आधुनिक सामान की फैक्ट्री लगाना चाहता हूं, जिससे कि गांव का एक एक परिवार मेरे जितना अमीर हो जाए। इस योजना को सफल बनाने के लिए सारे गांव वालों को मुझे अपना सारा धन देना होगा।"
गांव वाले उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं। सत्यनारायण गांव वालों के सारे रुपए सोना चांदी अपने सारे रुपए सोना चांदी अपना घर जमीन जायदाद बेचकर सारा पैसा और सोना चांदी 4-5 बोरों में भरकर आधी रात को नदी के रास्ते से नाव से भागने कोशिश करता है।
जैसे ही नदी के बीचो-बीच पहुंचता है तो तेज बारिश होने लगती है और तेज आंधी तूफान आ जाता है। बांध टूटने से नदी में बाढ़ आ जाती है। नदी में डूबने से सत्यनारायण की मृत्यु हो जाती है।
लेकिन रुपए और सोने चांदी के जेवर बाढ़ में बह कर वापस गांव में आ जाते हैं। गांव के लोगों को उसकी मौत का बहुत दुख होता है, लेकिन उसे लालच का फल मिलने की खुशी भी होती है। गांव के लोग सारे गांव का धन और सत्यनारायण का धन इकट्ठा करके गांव में फलों का जूस बनाने की फैक्ट्री लगा देते हैं।।
