अध्यापक बूढ़ा भालू
अध्यापक बूढ़ा भालू
4 mins
242
- असम के एक छोटे से गांव में पन्नालाल अपनी पत्नी और एक पुत्री और पुत्र के साथ रहता था। पन्नालाल का रोजगार जंगल से सूखी लकड़ी काट के लाना उसको आसपास के लोगों को बेचना था। पन्नालाल लकड़हारे के काम से ही अपने परिवार का पेट पालता था। लकड़हारे का काम उसका सर्दियों के मौसम में अधिक चलता था। और गर्मियों के दिनों में पन्नालाल अपने परिवार का गुजारा ठीक से नहीं कर पाता था। पन्नालाल जब भी जंगल में लकड़ी काटने जाता था, तोउसकी मुलाकात एक बूढ़े भालू से जरूर होती थी। बूढ। भालू भी पन्ना लाल का रोज इंतजार करता था। पन्नालाल लकड़ियां काट काट कर इकट्ठा करता रहता था। और बूढ़ा भालू उसके पास चुपचापबैठकर उसे देखता रहता था ।पन्नालाल जब भी दोपहर का खाना खाता था, तो खाना जाए दा हो या कम उस बूढ़े भालू को थोड़ा
- बहोत खाना जरूर देता था। भालू चुपचाप पन्नालाल से रोटी सब्जी ले लेता था। गर्मियों के दिन थे, इसलिए पन्नालाल की सूखी लकड़ियां कम ही बिकती थी। गर्मियों के दिनों में पन्नालाल मुश्किल से अपने परिवार का पेट पाल पाता था। इस वजह से वह दोपहर का खाना जंगल में कम ही ला पाता था। फिर भी पन्नालाल बूढ़े भालू को अपने खाने में से थोड़ा
- बहोत जरूर देता था। गर्मियों के दिनों में एक दिन भालू देखता है, कि पन्नालाल खाना खाने के बाद हरे पत्ते और घास खा रहा है। भालू यह समझ नहीं पाता। दूसरे दिन फिर पन्नालाल जंगल में सूखी लकड़ी काटने आता है। और अपने खाने में से फिर थोड़ा
- बहोत खाना भालू को दे देता है। और कुछ देर बाद पन्नालाल घास पत्ते खाने लगता है। यह देखकर भालू को समझने में देर नहीं लगती, कि पन्नालाल अपने कम खाने में से भी मुझे दे देता है। इसलिए पन्नालाल मेरी वजह से वह भूखा रह जाता है। उसी समय भालू अपने मन में सोच लेता है, मुझे पन्ना लाल की किसी न किसी तरह से मदद करनी चाहिए। बुड्ढा भालू अपने मन में विचार कर लेता है, कि कल से मे पन्नालाल लकड़हारे को जानवरों की भाषा सिखाऊंगा। ऐसा वह इसलिए करता है, क्योंकि उस जंगल में जब फॉरेस्ट अफसर और वन विभाग के
- कर्मचारी आते थे, तो वह आपस में बातचीत करते थे, कि अगर हमें जानवरों की भाषा का ज्ञान होता तो, हम देश विदेशों के (फॉरेस्ट) जंगल के विभाग में बहुत तरक्की करते। इसलिए बुड्ढा भालू पन्नालाल को उसी दिन से, जानवरों की भाषा इशारों और खेलकूद के द्वारा सिखाना शुरू कर देता है। भालू को पता था, जानवरों की भाषा सीखने से पन्नालाल को जरूर कुछ ना कुछ फायदा होगा। लकड़हारा पन्नालाल जब सूखी लकड़ियां काटने जंगल में आता था, तो बुड्ढा भालू चुपचाप बैठा रहता था। आज भालू बहुत ही आज और बहुत ही चंचलता कर रहा था।और लगातार इशारे कर रहा था। पन्नालाल यह सब समझ नहीं पा रहा था। पर पन्नालाल को भालू की यह हरकतें बहुत अच्छी लग रही थी। पन्नालाल जब भी सूखी लकड़ी काटने जंगल में आता था। तो भालू इसी तरह से उसे जानवरों की भाषा सिखा दिया करता था। धीरे-धीरे समय बीतने लगता है। पन्नालाल को भी खुद महसूस होने लगता है, कि मैं जंगली जानवरों की भाषा कैसे समझने लगा। पन्नालाल समझ जाता है, कि यह सब इस बूढ़े भालू कि अध्यापक वाली शिक्षा का चमत्कार है। एक दिन फॉरेस्ट ऑफिसर (वन विभाग का अफसर) और कुछ कर्मचारी जंगल में किसी घायल चीते को ढूंढ रहे थे। घायल चीता वन विभाग के कर्मचारियों को देखकर कहीं छुप गया था। पन्नालाल वन विभाग के कर्मचारियों से सारी बात पता करके, इशारों और जानवरों की आवाज निकाल कर, चीते को झाड़ियों से बाहर बुला लेता है। चीता उसकी सारी बात ध्यान से सुनता है। और वन विभाग के कर्मचारियों से बड़ी शांति से मरहम पट्टी करवा लेता है। वन विभाग के कर्मचारी और वन विभाग काअफसर यह सब देख कर सोच में पड़ जाते है। और पन्नालाल से बहुत खुश होते है। वन विभाग का अफसर उसी समय फोन पर अपने बड़े अधिकारियों से बात करके, पन्नालाल को वन विभाग में सरकारी नौकरी दिलवा देता है। सरकारी नौकरी के साथ-साथ पन्नालाल को सरकारी मकान भी मिल जाता है। भालू की मदद से और शिक्षा के ज्ञान से पन्नालाल के जीवन में सुख शांति आ जाती है। और उसकी गरीबी सदा के लिएखत्म हो जाती है। कहानी की शिक्षा- जीवन में शिक्षा कभी ना कभी जरूर और बहुत काम आती है।
