मैं बच्चा हूं।
मैं बच्चा हूं।
उत्तराखंड के पहाड़ों के घने जंगल में एक बुड्ढा बब्बर शेर रहता था। बुड्ढा बब्बर शेर जंगल के सभी जानवरों से आयु में बड़ा था। पर उस में उत्साह और उमंग जवान जानवरों से भी ज्यादा थी। बुड्ढा बब्बर शेर भालू बंदर लंगूर हाथी आदि जानवरों के बच्चों के साथ खूब उछल कूद कर के बच्चों की तरह छलांग लगा लगा कर खेलता था। खेलते खेलते हैं, जब किसी जानवर से टकरा जाता था, तो अपने से छोटे जानवरों को भी अंकल आंटी कहता था। खेलते खेलते बुड्ढे बब्बर शेर की सांस फूल जाती थी, वह आराम करके दोबारा खेलना शुरू कर देता था। बुड्ढे बब्बर शेर के जाने के बाद जंगल के सब जानवर उसकी खूब मजाक उड़ाते थे। और पेट पकड़ पकड़ कर हंसते थे। यह बुड्ढा बब्बर शेर अपने को अभी भी जवान समझता है। बुड्ढे बब्बर शेर को भी पता था, कि जंगल के सब जानवर मेरी आयु अधिक बताकर खिल्ली उड़ाते हैं। इनकी बातें सुनकर बुड्ढा बब्बर शेर थोड़ा दुखी हो जाता था। बुड्ढा बब्बर शेर बहुत ही खुश मिजाज था। वह जंगल में किसी भी जानवर को दुखी देखना पसंद नहीं करता था। उसके खेलकूद हंसी मजाक से जंगल के सब जानवर बहुत खुश रहते थे। एक दिन दूसरे जंगल से घूमने फिरने के लिए बुड्ढे बब्बर शेर के पिता की आयु का एक गधा इनके जंगल में कुछ दिनों के लिए आता है। बुड्ढा गधा जंगल के सब जानवरों के सामने बुड्ढे बब्बर शेर से बेटा कहकर पानी पीने के लिए मांगता है। बुड्ढा बब्बर शेर उस दिन गधे कि इस बात से बहुत खुश हो जाता है। और उस दिन से उन दोनों की आपस में मित्रता हो जाती है। जब बुड्ढा बब्बर शेर जंगल में जानवरों के बच्चों के साथ खेलता था, तो उस समय बुड्ढा गधा एक चबूतरे पर बैठ कर इनका खेल देखा करता था। और बूढ़े बब्बर शेर को बार-बार बेटा कहकर उसका उत्साह बढ़ाता था। बुड्ढा गधा जब लगातार बोलता था, तो उसकी सांस फूल जाती थी। और खांसी आने लगती थी। खांसते खांसते वह चबूतरे से उछल कर नीचे गिर जाता था। और उसकी चारों टांगें ऊपर हो जाती थी। बूढ़ा बब्बर शेर भागकर बुड्ढे गधे को उठाता था। और पीठ थपथपा कर पानी पिलाता था। बुड्ढे गधे के आने से बूढ़ा बब्बर शेर बूढ़ा होने के बावजूद अपने को जवान समझने लगा था। जंगल के सब जानवर भी समझ गए थे, कि आयु का कोई मूल्य नहीं होता। अपने से बड़ा कोई आता है, तो उसके साए में या छत्रछाया में बुड्ढे से बुड्ढा भी अपने को बच्चा महसूस करने लगता है। इसलिए बुजुर्गों का साया होना बहुत जरूरी है। इससे नई ताजगी उत्साह आता है। इसलिए बड़े बूढ़ों का मूल्य समझना चाहिए। उनके होने से हमें सुरक्षा समझदारी ज्ञान तो मिलता ही है, और जीवन में नई ताजगी भी आती है। इसलिए बड़े बूढ़ों की सेवा करना हमारा कर्तव्य और जिम्मेदारी है। परिवार में बड़े बुजुर्ग होने से बहुत हिम्मत मिलती है, बड़े बूढ़ों के आगे हम अपने को बचा ही महसूस करते हैं। कहानी की शिक्षा-जिस परिवार में बड़े बूढ़ों का साया होता है, वहां सब अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं।
