सुरजमनी की भी फूलों जैसी चेहरा दिख जाती है और उसे याद कर जोर -जोर से रोने लगती हूँ।
सुबह का जो भुला था वो शाम होते - होते घर लौट आया था।
नेता और संपादक के घटियापन की पराकाष्ठा में लगातार भागते-भागते वह थक गए थे
रवि कितना जिम्मेदार हो गया वो मुस्कुरा उठी। दिवाली की रौशनी उसकी जिंदगी भी रौशन कर गई थी।
मनोदशा सुधरने लगी और वह फिर से खिलखिलाने वाली संदली बन गयी।
शुशांत के पापा एक बार मुझे देख रहे थे एक बार खून से सनी हुई मेरी शर्ट को जो उनके पेट से