मैं और अब कमजोर नहीं पड़ूँगी। अबसे साहित्य साधना ही मेरी हमराह बनेगी। और मेरी लेखनी दौड़ने लगी थी।
तूफान यह कि कल उसका जन्मदिन था, जिसने शायद आज से दो हफ्ते पहले मुझे आईना दिखा दिया था।
माँ के आँखों में इक अजीब खुशी झलक रही थी ये सब बताते हुए मैने कहाँ 'अच्छा ये बात है.. ये सब कपड़े साफ करके अलमारी में डा...
बिना विचारे ही सारी गोलियां एक साथ...और प्रायश्चित पूरा हो गया था..हमेशा के लिए।
बार-बार मेरी नज़रों के सामने उसकी लड़खड़ाते हुए हाथ जो हमारे आँसू पोंछने के लिए बढ़ रहे थे वह
अब मुझे मेरा बेटा वापिस मिल चुका था।