आज अपनों के बीच था तपन और अपने सौभाग्य पर उसे यकीन नहीं हो रहा था! किन्तु.....किन्तु ये लोग.... उसे देखकर ख़ुश हैं या......
वो भी उसे दूर हो गया और अब वो पुरी तरह अकेले हो गयी, ये सोचते सोचते वो रोने लगी।
लेखक : मिखाइल बुल्गाकव अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
जिसे छोड़ कर वो खुद की तलाश में उन सब को पीछे छोड़ कर बहुत दूर आ चुकी थी
अब ये गाय और सुंदर दिखाता है।
किन्तु 4 मंजिल की दूरी तय कर सके ऐसी सीढ़ी न बना सके।