हर एक याद आज भी फासलों में भी सिमटी सी हैं हर एक याद आज भी फासलों में भी सिमटी सी हैं
चलना चाहता है साहिल पे अपने बिखरे ख़ुशियों को समेट के, चलना चाहता है साहिल पे अपने बिखरे ख़ुशियों को समेट के,