सरल भाषा में मित्रों के लिए दूसरी ग़ज़ल आलम खुर्शीद सरल भाषा में मित्रों के लिए दूसरी ग़ज़ल आलम खुर्शीद
दिल में थी मुहब्बत, लब पे सुखनवरी, बस इतना मुख़्तसर था सरमाया मेरा. दिल में थी मुहब्बत, लब पे सुखनवरी, बस इतना मुख़्तसर था सरमाया मेरा.
कैसे हो सकती है वो रात भयानक.... जिसमें जुगनू सितारे सिमटते हो अचानक। कैसे हो सकती है वो रात भयानक.... जिसमें जुगनू सितारे सिमटते हो अचानक।
ग़ज़लें लिखनी नहीं आती तुम्हें कहती तो हो फिर अदाएँ दिखाकर अपनी क्यूँ मुझसे लिखवाती हो ग़ज़लें लिखनी नहीं आती तुम्हें कहती तो हो फिर अदाएँ दिखाकर अपनी क्यूँ मुझसे लि...