शर्म भी सकुचाई सी आधे अधूरे से थे शर्म भी सकुचाई सी आधे अधूरे से थे
तुम, आ रही हो ना कविता अपनी पूर्णता के साथ मेरे भीतर... आ जाओ मैंने खोल दिए हैं सारे कपाट। तुम, आ रही हो ना कविता अपनी पूर्णता के साथ मेरे भीतर... आ जाओ मैंने खोल दिए हैं ...