महल बनाकर भी हम सड़कों पर ही सोते हैं। कपड़े साफ करके भी गंदे कपड़े पहनते हैं। गांव को साफ करक... महल बनाकर भी हम सड़कों पर ही सोते हैं। कपड़े साफ करके भी गंदे कपड़े पहनते हैं...
बेड़ियों में जकड़ रहे हैं लोग, इंतहा हो गई है अब तुम्हारे ज़ुल्म की, इसलिए मैं वो जंज़ीर तोड़ने आ... बेड़ियों में जकड़ रहे हैं लोग, इंतहा हो गई है अब तुम्हारे ज़ुल्म की, इसलिए मै...
पेट का सब खेल है घर छूटता है गांव से नाता टूटता है। पेट का सब खेल है घर छूटता है गांव से नाता टूटता है।
मज़दूर हूँ पर मजबूर नहीं... बोझा उठाता हूँ ,मैं बोझ नहीं। मज़दूर हूँ पर मजबूर नहीं... बोझा उठाता हूँ ,मैं बोझ नहीं।
हां मैं मजदूर हूं। हां मैं आज पैदल चलने केलिए मजबूर हूं। हां मैं मजदूर हूं। हां मैं आज पैदल चलने केलिए मजबूर हूं।
हम मज़दूर हैँ, हालात के हाथों मज़बूर हैँ । हम मज़दूर हैँ, हालात के हाथों मज़बूर हैँ ।