एक कविता--- गदराए पलाश,संवेदनाओं का ताप कोयल आलाप,लहराते आम्रपल्लव फागणी बयार में इतराती है एक कविता--- गदराए पलाश,संवेदनाओं का ताप कोयल आलाप,लहराते आम्रपल्लव फागणी बयार...
चलो आज लें ये प्रतिज्ञा, हम जंगलों को फिर से लगाएं! चलो आज लें ये प्रतिज्ञा, हम जंगलों को फिर से लगाएं!
इन नन्हीं गौरया के चहकने से गूंजा करता था घर आंगन। इन नन्हीं गौरया के चहकने से गूंजा करता था घर आंगन।