ज़रूरी नहीं...
ज़रूरी नहीं...
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तबस्सुम को ना कभी शिकायत काटों की
ज़रूरी नहीं हर खत को लिफाफों की,
हर रात रोशन आसमान एक चाँद से.
फिर क्या ज़रूरत सितारों की,
समझे अगर नज़रों से लफ्ज़ ए बयां
तो ज़रूरत ही नहीं अल्फाज़ों की ,
छलक जाता है यूं ही नज़रो से जाम
फिर साकी....क्या ज़रूरत पैमानों की।