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Alok Singh

Others

4  

Alok Singh

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ज़िंदगी की आवर्त सारणी

ज़िंदगी की आवर्त सारणी

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ज़िंदगी के कई पलों को

आवर्त सारणी कर डाला

कई ज़ज्बात, कई ख़्वाब

सब आवर्त सारणी में भर डाला

उठ रहे कई मजबूत ठोस विचारों को

पस्त द्रव और गैस जैसे हालातों को

समूह और आवर्त में रख डाला


ज़िंदगी के कई पलों को

आवर्त सारणी कर डाला

खुद की ज़िम्मेदारियों को

प्राथमिकता के हिसाब से

अपनी जेब में पैसों के भार और

अपनी औकात की त्रिज्या के आधार पे

स,प,डी,फ खंड में सजा डाला


ज़िंदगी के कई पलों को

आवर्त सारणी कर डाला

औरों की विचारधारा से अपनी

न बदलने वाली विचारधारा को

अक्रिया गैसों के समूह की तरह

अपनी समझ की आखिरी कक्षा

की उपकक्षा को

सारे इलेक्ट्रानों से भर डाला


ज़िंदगी के कई पलों को

आवर्त सारणी कर डाला

कितना आसान है अब समझना

मुझ को लेकिन

औरों ने बेवजह

कठिन है कठिन कहकर

कठिन कर डाला

कुछ अपवाद हैं माना की

मुझ में आवर्त सारणी की तरह

फिर भी एक सरलता है

ऊपर से नीचे या दाएं से बाएं

जाने के लिए रास्ता है


विषमताएं हैं तो उनकी भी

एक वजह है

कुछ खालीपन की भी

इक़्तिज़ा (आवश्यकता) है

कहीं खुद को धातु तो

कहीं अधातु कर डाला

ज़रूरत पड़ने पर खुद को

रेडियोएक्टिव कर डाला

ज़िंदगी के कई पलों को

आवर्त सारणी कर डाला


कभी अपने गुस्से को कई

इलेक्ट्रॉनों का आवेश किया

कभी लैंथेनाइड्स कभी

एक्टिनाइड्स में मतभेद किया

कभी किसी से लेने तो कभी

इलेक्ट्रान देते की प्रवर्ति रखी

कभी खुद को खुद से निकालने के लिए

आयनन विभव समझी

कभी इलेक्ट्रॉन बंधुता से बंधुता की

कभी विद्युत ऋणात्मकता से

धनात्मकता की

कभी स्थिरता के लिए खुद को साझा किया

कभी खुद के गुण धर्म को

राजधर्म की परिभाषा किया

कभी खुद को ज्ञात तो

कभी खुद को अज्ञात कर डाला

ज़िंदगी के कई पलों को

आवर्त सारणी कर डाला



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