युद्ध ना होने देना तुम
युद्ध ना होने देना तुम
जब तक संभव हो तो टालो,
जब तक संभव हो तो पालो,
द्वंद रहे मतभेद रहे पर,
युद्ध ना पलने देना तुम,
ये माना तुम राणा के वंशज,
पर बुद्ध ना मरने देना तुम।
विभीषिका इस युद्ध की, तुमने कभी देखी?
देखी क्या मां की गोद भी होते हुए सूनी?
या मांग की लाली कफन में दफन होते,
धागे राखियों के खुद को बड़ा असहाय सा पाते,
पिता की आंख भी निःशब्द सी छिप छिप कहीं रोती,
जब याद उस जवान की ताबूत में खोती।
तुमने तो कह दिया कि युद्ध अवश्यम्भावी है,
वेदना बदले की तुम पर कितनी हावी है,
ये माना वीर तुम बहता लहू ही वीर का तुममें,
ना भूलो मगर है शांति का पर्याय भी तुममें,
तुममें भगत सा वीर है तो तुममें ही है गांधी,
देखो ढहे ना नींव चले ना युद्ध की आंधी।
वार्ताओं के द्वार ना बंद हो जाएं,
द्वंद बातों से सम्हालें ना बंदूक उठाएं,
भाला भले कटार लिए तैयार खड़े हम,
एक बार फ़िर प्रस्ताव समझौते का ले आएं,
एक पहल फ़िर से करें शांति बने जग में,
बापू की इस थाती को फ़िर जिंदा सा कर पाएं।
संभावना जब तक रहे जिंदा रहे कोशिश,
मां की गोद में ना कट गिरे उसके पुत्र का ही सिर,
खड़े हैं सैकड़ों जो काल को उकसा रहे जग में,
युद्ध की अग्नि को हर पल जला रहे जग में,
कोशिश करें एक बार फिर शांति दूत बन जाएं,
एक अंतिम बार प्रस्ताव समझौते का ले आएं।।
