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Amit Kumar

Others

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Amit Kumar

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यकीन

यकीन

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किसकी बात का यकीं करें हम

सब बहुत ख़र्च करते हैं

दिमाग़ अपना और

तालों में बंद रखते है दिलों को।

अपने रोशन दिमाग़ में

इतना ज़ंग लगाकर वो,

बात करते है रौशन ख़्याल होने की।

भूल बैठे हैं वो अंधकार में ही

ज़्यादा होती है उम्मीद सुबह के होने की।

    


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