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अच्युतं केशवं

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अच्युतं केशवं

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यह अधखिली कली पाटल की

यह अधखिली कली पाटल की

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यह अधखिली कली पाटल की

इसको मेरा हृदय समझना।


सावन में बादल तो उमड़े,

आँगन कभी भिगो ना पाये।

मन-मन्थन के गीत-रतन वे,

शायद ही ओठों तक आये।

न्यास-ध्यान-मुद्रा तक सिमटी

रही साधना प्रेमालय की।

आवाहन के साम छंद का,

प्राण न उच्चारण कर पाये।

मौन-मुखर ध्वनि सी पायल की,

मेरी भाषा-विनय समझना।

यह अधखिली कली पाटल की

इसको मेरा हृदय समझना।


कंठ तलक कंटकमय जिसको,

स्वयं विधी ने वसन ओढ़ाए।

सहज प्रश्न है सखी तुम्हारा,

उसको कैसे गले लगायें।

पलभर इन शूलों को भूलो,

मेरी मदिर गंध में झूलो।

प्रेम राम का पूत नाम है,

जीवन शूल नमित हो जाये।

आँखो में रेखा काजल की,

मुझे निकट इस तरह समझना।

यह अधखिली कली पाटल की

इसको मेरा ह्रदय समझना।


मुझे न अभिलाषा तुलसी की,

प्रिय मैं शालीग्राम नहीं हूँ।

जो अक्षत प्रत्यंचा चाहे,

वह अचूक संधान नहीं हूँ।

मैने तपोवनों में जाकर,

ढूँढ़ी है शाकुन्तल बाहें।

शत-प्रतिशत धरती का वासी,

मानव हूँ, भगवान नहीं हूँ।

रखना याद गली पागल की,

द्वार खुला हर समय समझना।

यह अधखिली कली पाटल की

इसको मेरा ह्रदय समझना।


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