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सामंत कुमार झा 'साहित्य'

Others Children

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सामंत कुमार झा 'साहित्य'

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ये तो मेरी समझ न आए

ये तो मेरी समझ न आए

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ये तो मेरी समझ न आए,

क्या पहेली कोई बताए,

जरा कोई हमें समझाए,

विराम चिह्न है क्या भाए।


कहीं पर थोड़ा रूकना,

कहीं रूकना है पूरा,

इन के चक्कर में पड़ कर,

काम रह गया अधूरा।


मेरी तो ऊपर से निकले,

कितनी भी नियम लिख ले,

मैं तो इनको समझ न पाऊँ,

बस हर समय रट्टा लगाऊं।


मैं हूँ और ये विराम चिह्न है,

लेखन अधूरा इनके बिन है,

मैं तो इनको समझ न पाया,

मुझे बस ये लिखना न आया।



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