STORYMIRROR

Jhilmil Sitara

Others

4  

Jhilmil Sitara

Others

ये ढलती हुई शाम ..

ये ढलती हुई शाम ..

1 min
273


झरोखे से बाहर 

निहारते हुए 

डूबते सूरज को देखकर

पिघलती उसकी लालिमा में

सबकुछ कितना सलोना लगता है।


पंक्षियों का लौटना 

घोंसलों में अपने - अपने

जीवन राग बिखेरता है।

धान की बालियों पर 

ढलती हुई थकी शाम में

निखरता सौन्दर्य दीखता है।


लौटते किनारे पर वो नाविक

पानी पर तैरते सिन्दूरी रंग को

अगली सुबह के लिए समेटता है।


अंधेरे के आग़ाज पर

बढ़ाती रात्रि‌ के कदम पर 

प्रकृति नए रूप में उभरता है।


ये घटती रौशनी हर‌ तरफ़

याद सबको दिलाती है

है जो आशियां तुम्हारा 

इंतज़ार की राहं में दीए जलाता है।



Rate this content
Log in