ये बूँदें
ये बूँदें
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ये बूँदें वेबजह यूँ ही तो ना बरसी होंगी
जाने कब से धरती की आँखे तरसी होंगी
है यह प्यास भड़की हुई सदियों सदियों से
क्या इस धीमी धीमी फुहार से तसल्ली होगी ?
बादलो के ईमान का भरोसा अब रहा ही नहीं
कभी बार बार तो कभी महीनो दिखते ही नहीं
बेबस लाचार धरती पथरा सी गई है इन्तजार में
कह दो बादलों से यह आँख मिचौली अच्छी नहीं ?
कैसे पहचाने कोई नियत इन बहरूपिये बादलो की
रोज रोज नई शक्ल, नया रूप लिया चले आते है
यहां सदियों से राह तकती धरती अब मायूस हो गई
क्यों यह बादल प्यास धरती की समझ पाते नहीं ?
एक दिन तो टूटेगा ही गुरुर इन बेपरवाह बादलो को
और बादल रह रह के जम जम के बरस जाएंगे
हर तरफ बस पानी ही पानी और पानी का समंदर
प्यासी धरती के होंठ भीनी खुशबू से लरज जायेगे