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Prashant Kadam

Others

5.0  

Prashant Kadam

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यादें

यादें

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अब मकान बहुत पक्के है

सिमेंट कांक्रीट से बने है

धरती के सहारे पर खड़े है

मगर आसमान मे जा पहुंचे है


अब ना कोई आंगन है

ना ही अगल बगल वृक्ष है

ना चिड़ियों की चहक है

ना फूलों की मस्त महक है


ना अड़ोस मे पड़ोसी है

ना ही कोई रिश्तेदार है

हम अपने घर के अंदर है

पर अपनों से कोसो दूर है


हम हममें

ही उलझे है

कामकाज में व्यस्त है

अगले किस्त की चिंता है

जो हमे व्यग्र रखती है


चाँद के नज़दीक पहुंचे है

पर शांती नही मिलती है

हम साथ साथ तो रहते है

पर दो शब्दों के मोहताज है


सच अब सब कुछ पास है

पर जैसे घर के दरवाज़े बंद है

वैसे ही सूख शांति की कमी है

पुराने दिनों की सिर्फ यादें है




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