यादें
यादें
अब मकान बहुत पक्के है
सिमेंट कांक्रीट से बने है
धरती के सहारे पर खड़े है
मगर आसमान मे जा पहुंचे है ।
अब ना कोई आंगन है
ना ही अगल बगल वृक्ष है
ना चिड़ियों की चहक है
ना फूलों की मस्त महक है ।
ना अड़ोस मे पड़ोसी है
ना ही कोई रिश्तेदार है
हम अपने घर के अंदर है
पर अपनों से कोसो दूर है ।
हम हममें
ही उलझे है
कामकाज में व्यस्त है
अगले किस्त की चिंता है
जो हमे व्यग्र रखती है ।
चाँद के नज़दीक पहुंचे है
पर शांती नही मिलती है
हम साथ साथ तो रहते है
पर दो शब्दों के मोहताज है ।
सच अब सब कुछ पास है
पर जैसे घर के दरवाज़े बंद है
वैसे ही सूख शांति की कमी है
पुराने दिनों की सिर्फ यादें है ।