यादें उतर आई हैं
यादें उतर आई हैं
लगता है यादें उतर आई हैं
हकीक़त में।
ज़ख्म रौशन हो उठे हैं
और ज़ख्म देने वालों की
परछाइयाँ
मंडरा रही हैं
ज़ख्मों के इर्द गिर्द।
जो सुना नहीं वो
सुनाई पड़ रहा है
जो देखा नहीं वो
दिखाई पड़ रहा है
यकीनन हम इस्तेमाल हुये हैं
अपने ही विरुद्ध।
हम भी अजीब हैं
देखना था एहसास की आँख से
और देख रहे थे दिमाग से।
किसी ने हमारे हित की आड़ में
हमसे हमारा विचार तक छीन लिया है
मनुष्य नहीं रहे हम
पता भी नहीं रहा हमारा
हमारी मनुष्यता में।
निजाम भी नहीं रहा हमारा
ठिकाने बदलने का ठौर ठहर गया है
यादें रौशन हो उठी हैं
और ज़ख्मों की हरियाली का
प्रबंद्ध रौशन हो रही यादों में
थोड़ा साफ साफ दिख रहा है
यकीन नही होता
ये हम हैं
अपने को अनुपस्थित
दिखाने के प्रयास में।
अच्छा होता है
मनुष्य होने का एहसास
एक पता शेष है
और आवाज़ आ रही है
तुम मनुष्य हो
और तुम्हारी मनुष्यता
तुम्हारे संसार को
खूबसूरत बनाने की शक्ति रखती है।
उठो
उठो और सक्रिय हो उठो
अपनी मनुष्यता के साथ।