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AMIT KUMAR

Others

5.0  

AMIT KUMAR

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याद आये तुम...

याद आये तुम...

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अगर मैं मंच पर बोलूं, समझ लो याद आये तुम,

अगर मैं कुछ भी न बोलूं, समझ लो याद आये तुम,

ये मेरे शब्द हों, या गीत हों, या हो मेरी कविता,

अगर मैं इनको गाऊं तो, समझ लो याद आये तुम।


हमेशा गीतों की महफ़िल, वीरानी होती है,

न हो गर साज़ और सुर तो, नादानी होती है।

ये मेरे गीत हों, या साज़ हो, या सुर को ही ले लो

अगर ये न मिले तो फिर, समझ लो याद आये तुम।


मैं जब भी सोचता हूँ, गीत गाऊं या कोई कविता,

तुम्हारे बिन न बनता है, कोई भी गीत या कविता।

तुम्ही हो सुर मेरी लय, ताल हो और गीत भी तुम हो,

अगर मैं गा नहीं पाउ, समझ लो याद आये तुम।


मेरा दिल बोलता है, और लब खामोश रहती है,

तुझे पाने कि है ख़्वाहिश, यही बस सोच रहती है।

मेरा दिल भी तभी गायेगा, कोई गीत या कविता।

लब और दिल गुनगुनाये तो, समझ लो याद आये तुम।



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