वसंत ऋतु का आगमन
वसंत ऋतु का आगमन
सोलह श्रृंगार में सजी वसुंधरा हुआ वसंत का आगमन,
शहद सी मिठास इस ऋतु में जो प्रफुल्लित करे जीवन,
सुहानी सी यह ऋतु अनुपम,है ईश्वर का अद्भुत तोहफ़ा,
जो प्रकृति को लौटाए उसकी मुस्कुराहट उसका यौवन।
स्वर्ण रथ पर विराजित होकर जब धरा पर आए वसंत,
चेतना जगाए कण -कण में खुशियांँ लेकर आए अनंत,
हरियाली की चुनर ओढ़ नव वधु सी इठलाती वसुंधरा,
देख हृदय बस यही चाहे इस दृश्य का कभी न हो अंत।
दरख़्तों पर आ जाती हैं बहारें पुष्पित होते नव पल्लव,
खिलखिलाकर बलखाती लताएंँ पक्षी करते हैं कलरव,
ऋतुराज आगमन से, प्रकृति सौंदर्य की महफ़िल सजी,
ईश्वर की यह अद्भुत चित्रकारी देख मन हो जाए नीरव।
सरसों के पुष्प मानो कोई चादर बिछ गई हो पितांबरी,
नृत्य मुद्रा में सुसज्जित अधरों पे मुस्कान लिए धरित्री,
ख़ूबसूरत प्रकृति के साथ सूर में मिला कर अपना सूर,
गंधर्व विद्या में निपुणता का, जैसे परिचय है वो दे रही।
वसंत ऋतु लेकर आती किसानों के अधरों पे मुस्कान,
फसलों की कटाई लेकर आए खुशियों का नव विहान,
महीनों की कड़ी मेहनत का, मिलता उन्हें पारितोषिक,
यह ऋतु किसानों के लिए उत्सव किसानों की है जान।
नवजीवन देती है ये ऋतु मन में जगाती आत्मविश्वास,
शांति और शीतलता प्रदान करता मुनव्वर-ए-महताब,
तनासुख यह प्रकृति का फिजाओं में भरे अनोखा रंग,
हकीकत से परे किसी जन्नत का, जैसे देख रहे ख़्वाब।
इसी ऋतु में खिलते पंकज, सरिता में आ जाती बहार,
पूर्ण रूप से ढक देते जल को, बस दिखे कमल कतार,
जैसे संकेत दे रहे हों, दामन में समेट लो सारे दुखों को,
और जीवन का आनंद लो यही तो है खुशियों का सार।
ऋतुओं का राजा ये, है ऋतु ये सब ऋतुओं से निराली,
पशु पक्षी मानव धरा अंबर संपूर्ण जगत की खुशहाली,
ऋतु परिवर्तन का आगाज़ ये,त्यौहार साथ लेकर आए,
वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि, रंग बिरंगी, रंगों की होली।
सुंदरता से मंत्रमुग्ध करती, रंग -बिरंगी फूलों की बहार,
वसंत ऋतु ऐसी जो लेखकों की कलम में लाए खुमार,
ऋतुराज के प्रकृति से मिलन की इस अद्भुत बेला को,
कवि भी अपने मन के काग़ज़ पर, लेना चाहे है उतार।