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Indu Jhunjhunwala

Others

4.8  

Indu Jhunjhunwala

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वसंत आया है

वसंत आया है

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कपँकपाती जाड़े की सुबह से,

सुहानी मन्द मन्द ,

चलती बयार वाली सुबह को

झरते पीले सूखे-सूखे से,

पात से भरे आँगन से,

हरे भरे चमकीले,

पत्तियों से हँसती लताओं को ,

बर्फ की चादर से ढके मायूस से,

रंग बिरंगे फूलों से भरे ,

प्रकृति के आँचल को ,

देखा उसने चहूँ ओर,

पकड़नी चाही, 

बदलते सारे इशारों की डोर

आखिर कौन है

जिसका आगमन ,

इतना सुख दायी है?

कौन है जिसकी लिए बिछी ,

सारी खुदाई है।

पूछा एक नन्ही सी 

अभी अभी जन्मी कली ने,

क्यूँ छा गया है हर ओर हर्षोउल्लास ?

हर ओर ये हरियाली कैसी,

कैसा ये विलास?

बिछी जाती है ये प्रकृति

किसके स्वागत में ?

वासंती रंग घुल गया क्यूँ, 

सारे आगंन में?

कहा झूमकर भँवरे ने ,

मौसम भी शर्माया है

सखी , वसंत आया है।



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