वसंत आया है
वसंत आया है
कपँकपाती जाड़े की सुबह से,
सुहानी मन्द मन्द ,
चलती बयार वाली सुबह को
झरते पीले सूखे-सूखे से,
पात से भरे आँगन से,
हरे भरे चमकीले,
पत्तियों से हँसती लताओं को ,
बर्फ की चादर से ढके मायूस से,
रंग बिरंगे फूलों से भरे ,
प्रकृति के आँचल को ,
देखा उसने चहूँ ओर,
पकड़नी चाही,
बदलते सारे इशारों की डोर ।
आखिर कौन है
जिसका आगमन ,
इतना सुख दायी है?
कौन है जिसकी लिए बिछी ,
सारी खुदाई है।
पूछा एक नन्ही सी
अभी अभी जन्मी कली ने,
क्यूँ छा गया है हर ओर हर्षोउल्लास ?
हर ओर ये हरियाली कैसी,
कैसा ये विलास?
बिछी जाती है ये प्रकृति
किसके स्वागत में ?
वासंती रंग घुल गया क्यूँ,
सारे आगंन में?
कहा झूमकर भँवरे ने ,
मौसम भी शर्माया है
सखी , वसंत आया है।