वक़्त की बातें.....
वक़्त की बातें.....
कभी कभी मे सोचा करता हूँ,
कुछ सवालों मे घिर जाता हूँ,
फिर जवाब तलाशने लगता हूँ,
कभी खुद को आईने मे देखता हूँ,
कभी फिर यादों मे खोजता हूँ ,
जब उससे मे बाहर आता हूँ,
अपनी आँखे खोल के देखता हूँ,
वक़्त की बातें ही सुनता हूँ.
तब कुछ ऐसा लगने ही लगते,
खुद ही खुद से पराया लगते,
जब पुराने दिन सब याद आते,
बचपन से जवानी तक की बातें ,
वो हसीं मज़ाक और वो शरारतें ,
अब कियूँ सब लौट नहीं आते,
मे तो मे हूँ, सब मानते,
फिर क्यों होती वक़्त की बातें ?
मानता हूँ कुछ कुछ बदलते रहते,
ये उम्र जब हमारा ढलने लगते,
जीने की अंदाज़ भी बदल देते,
चाल चलन भी कुछ बदल जाते,
बाकि कुछ ये वक़्त बदल देते,
अपने भी कुछ, दूर चले जाते,
दोस्त बदल जाते, दोस्ती नहीं बदलते,
वक़्त का खेल, वक़्त की बातें.
मिलाना बिछड़ना तो होता रहता ,
पर यादे हमारा कभी नहीं मिटते,
दूर रहकर भी सदा अहसास दिलाते,
कुछ कड़वा सच, कुछ झूठी बातें ,
भले हम अलग अलग दूर रहते,
पर एक दूजे को याद करते,
सच है, ये वक़्त बदलते रहते,
पर नहीं बदलते, वक़्त की बातें.