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Prashant Bebaar

Others

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Prashant Bebaar

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वक़्त और रिश्ते

वक़्त और रिश्ते

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333


इंस्टाफ़िल्टर्स और फ़्रेंडज़ोण्ड के दौर में

बचा लो वो माँगी हुई चीनी की कटोरी

इन रिश्तों की खट्टी और मीठी निम्बोरी

कि काग़ज़ के फूलों से ख़ुशबू आती नहीं

बिन भीगे कोई डुबकी, लगाई जाती नहीं


बचा कर रख लो इन रिश्तों का बाग़बान,

वो छोटों से मुहब्बत, वो बड़ों का मान

वैसे तो अफ़सुर्दा राहों पे कोई हमदम नहीं होते, मगर

हाँ ! ख़ुदकुशी के पोस्ट पे भी लाइक्स कम नहीं होते


हाथ बढ़ाने, मिलने-मिलाने से बनते हैं रिश्ते

बचा लो वो, पनीली आंखों वाले फ़रिश्ते

कहीं लिख के बचा लो, वो दादी की कहानी

अलबेली चाट का किस्सा, नानी की ज़ुबानी

चाची-मौसी के बच्चों की वो गर्मी की छुट्टी

वो गलियों में कुल्फ़ी, लाला के चूरन की घुट्टी

साथ खेलने-खिलाने से बनते थे रिश्ते, होती थीं बातें

अब अंगूठे से फिसलती है दुनिया, यूँ ही कटती हैं रातें


वो बीगों के खेत और आँगन-ओ-बैठक

अब सिमट चुके हैं छोटी सी स्क्रीन पे आकर

पीपल के नीचे वाले चबूतरे अब राह ताक रहे हैं

मेरे फ़ेसबुक की खिड़की से ये कौन झाँक रहे हैं


बचा लो वो सब, जिसके खो जाने का ग़म है

इस पीढ़ी का डाटा है ज़्यादा, मैमोरी थोड़ी कम है

कहीं ऐसा न हो, कल को एक खोज चले

कि कैसे होते थे रिश्ते, क्या थे किस्से-कहानी

खोदी जाए ज़मीं, मिले अपनेपन की निशानी

बचा लो, कि थोड़ा भी वक़्त बहुत है

इस वर्चुअल सी दुनिया में घुलने से पहले

कर लो कुछ बातें फ़िज़ूल भी यूँ ही

अपने दिल की सब बातें, अपनों से कह दो

कह दो वो सब, जो बचाना है आगे ।



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