वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे
जब शादी का निमंत्रण
पुस्तिका के रूप में
छपकर आया करता था,
विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन का
कई महीनों से
जायजा लिया जाया करता था।
शादी पुस्तिका में
हजारों लाखों खर्च कर
मेजबानों का स्पेशल नाम
छपकर आया करता था,
बच्चों की ख्वाहिशों के रूप में
शायरी या कविता का रस भी
निमंत्रण को और खास बनाया करता था।
चमक दमक दिखाने के लिए
लाखों डेकोरेशन पर खर्च
हर कोई करता था,
देखने वाले देखें
कि शादी का मेला
जमीं पर चांदनी सा चमका करता था।
शादी की रात
ब्यूटी पार्लर में हर कोई चमका करता था,
कोई देखे इधर भी
डी जे पर अपनी अदाओं का
जलवा हर कोई बिखेरा करता था।
शादी से पहले अपनों को मनाने की जद्दोजहद
में पसीना हर तरफ से बहा करता था,
एक माने तो दूसरा रूठे
इसी में शादी का दिन भी नजदीक आ जाया करता था।
ढोल नगाड़ों के साथ दूल्हा
गाड़ियों पर गाड़ियां भर कर ले जाया करता था,
शराबी दोस्तों के लिए
स्पेशल गाड़ी बुक करता था।
गली मोहल्लों से जब बारात निकलती थी
अपनी अपनी छत से दूल्हे को हर कोई देखा करता था,
दूसरी तरफ नाचते हुए बारातियों में
सुंदर मुखड़ों को हर कोई देखा करता था।
बारात का स्वागत
लड़की वालों का पूरा दल करता था,
ढेर सारे पकवानों से
हर बाराती हर घराती स्वाद चखा करता था।
कभी कभी खाना कम पड़ जाता
तो बारातियों का पूरा दल अपनी अपनी नाराजगी
दूल्हे के बाप से बयां करता था,
भड़का हुआ दूल्हे के पिता
फिर लड़की वाले को हड़काया करता था।
दूल्हा दुल्हन के डिनर पर
सालियां का दल बड़े प्यार से जीजू जीजू कह कर
खाना परोसा करता था,
उधर दूल्हे के भाई दोस्त भी
अपने दल का इम्प्रेशन
सालियों का जताया करता था।
फेरों के बाद जूता चुराई
सालियों का दबदबा दिखाया करता था,
खर्चे पर और खर्चा
दूल्हा का बढ़ जाया करता था।
विदाई के वक़्त
दुल्हन के आंसुओं में
सारा मेकअप धुल जाया करता था,
गम्भीर मुद्रा में दूल्हा भी
गम्भीर हो जाया करता था।
