विषाणु राक्षस करोना
विषाणु राक्षस करोना
हे विषाणु राक्षस करोना !
अब तो हम पर करुणा कर।
आपके बारे में सुन- सुनकर
दहशत छा गई है धरती पर।
आजकल आप ही छाए हो
दूरदर्शन पर ।
मृत्यु की खबर सुन -सुनकर
द्रवित हो उठता है मन।
हर माँ के
गीले हो जाते हैं नैन
चिंता में बितती है रैन ।
व्याकुल होकर बच्चों को
ताकती दृष्टि।
बयां करती है
माँ के मन की स्थिति।
थोड़ा सा छींकने पर
वह ऐसे घबराती
जैसे खो दी उसने
कोई वस्तु कीमती।
बार-बार हाथों से
सिर पर सहलाती
कभी बच्चों को चूमती
तो कभी गोदी में सुलाती।
रात भर व्याकुल
आँखों से उसे निहारती।
बार-बार ईश्वर से प्रार्थना कर
स्वयं को हिम्मत बंधाती।
ईश्वर से सब की रक्षा की
गुहार लगाती ।
प्रात: फिर अपने काम में
लग जाती।
बाहर निकल
जब वह देखती
सब कुछ सामान्य देख
वह दंग रह जाती।
वहीं भीड़ -भाड़
इक्का-दुक्का
बिना मास्क पहने लोग!
मैले -कुचले मज़दूर,
गाड़ी पर गोला खाते नन्हे
मुन्ने बच्चे,
रास्तों पर बैठे भिखारी।
वह अपने आप से पूछती
क्या इन्हें करोना का
भय नहीं सताता ?
क्यों कोई मुझ सा विचलित
नजर नहीं आता ?
शायद यह छोटी सी बात
इन सबको है पता,
जो आया है, वह अवश्य है जाता।
केवल और केवल
मृत्यु ही सत्य है
यह संसार है जानता
कर लो कितने भी उपाय
इससे कोई छुटकारा नहीं है पाता।
इसलिए हे मानव,
जी ले हर पल को
क्यों चिंता कर
व्यर्थ में
समय गँवाता?