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Brijlala Rohanअन्वेषी

Others

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Brijlala Rohanअन्वेषी

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विजय मुबारक हो !

विजय मुबारक हो !

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विजय मुबारक हो !

विजय मुबारक हो !

घर में घी के दीये जलाएँ ।

खुशियाँ के गीत गुनगुनाएं ।

सबको गले मिलकर विजय का पर्व मनाएँ ।

न कोई छोटा ,न कोई बड़ा !

न कोई अपना ,न कोई पराया !  

सबको करें समान आदर !

भूल कर भी ये भूल न हो कि हमसे किसी हो जाए निरादर!                     

इस खुशियों के खुशनुमा त्यौहार में एक चीज का रखें ध्यान !

अपने कर्तव्य बोध का हमें रखे भान ! 

मन में कभी आये न पद- प्रतिष्ठा को लेकर कोई अभिमान ! 

ये जीत आपकी जीत नहीं !

और न कभी आपकी हो ही सकती है ! 

ये जीत है जनता के उम्मीदों की ,उनकी विश्वासो की !

उनकी आकांक्षाओं और आशाओं की ये जीत है ! 

ये जीत है उन बेआवाजों! बेज़ुबान जनता !

की जिन्होंने आवाज बनाकर अपनी भेजा है ! 

आपको राजगद्दी विरासत में नहीं मिली!

ये उन दरिद्र- नारायण के द्वारा ही

अख्तियार कराया गया गद्दी है यह ! 

एक आखिरी प्रार्थना ईश्वर से मेरी ,

हे ईश्वर! इन्हें सद्बुदी दें ताकि हर फैसला

ये जनता के हक में जनता के हिफाजत में ले सकें ।

यही बची मेरी आखिरी मुरीद है कि कभी भी

विजय के वहम को अपने ऊपर हावी न होने दें ! 

और खुशियाँ मनाएँ ! विजय के पर्व मनाएँ !!



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