विजय मुबारक हो !
विजय मुबारक हो !
विजय मुबारक हो !
विजय मुबारक हो !
घर में घी के दीये जलाएँ ।
खुशियाँ के गीत गुनगुनाएं ।
सबको गले मिलकर विजय का पर्व मनाएँ ।
न कोई छोटा ,न कोई बड़ा !
न कोई अपना ,न कोई पराया !
सबको करें समान आदर !
भूल कर भी ये भूल न हो कि हमसे किसी हो जाए निरादर!
इस खुशियों के खुशनुमा त्यौहार में एक चीज का रखें ध्यान !
अपने कर्तव्य बोध का हमें रखे भान !
मन में कभी आये न पद- प्रतिष्ठा को लेकर कोई अभिमान !
ये जीत आपकी जीत नहीं !
और न कभी आपकी हो ही सकती है !
ये जीत है जनता के उम्मीदों की ,उनकी विश्वासो की !
उनकी आकांक्षाओं और आशाओं की ये जीत है !
ये जीत है उन बेआवाजों! बेज़ुबान जनता !
की जिन्होंने आवाज बनाकर अपनी भेजा है !
आपको राजगद्दी विरासत में नहीं मिली!
ये उन दरिद्र- नारायण के द्वारा ही
अख्तियार कराया गया गद्दी है यह !
एक आखिरी प्रार्थना ईश्वर से मेरी ,
हे ईश्वर! इन्हें सद्बुदी दें ताकि हर फैसला
ये जनता के हक में जनता के हिफाजत में ले सकें ।
यही बची मेरी आखिरी मुरीद है कि कभी भी
विजय के वहम को अपने ऊपर हावी न होने दें !
और खुशियाँ मनाएँ ! विजय के पर्व मनाएँ !!
