वीर हनुमान
वीर हनुमान
सारी लंका ढाह दी,ऐसा तेरा तेज।
महा वीर लंकेश भी,हुआ देख निस्तेज।
कदम पड़े लंका हिली,पसरा हाहाकार।
आया कैसा वीर,देखो रावण द्वार।
वीर सभी परास्त हुए,देख हुए सब दंग।
देखो तो लंकेश का,घमंड होता भंग।
पिता ताप को भांप के,चला है मेघनाथ।
बृम्ह अस्त्र को देख के,झुका वीर का माथ।
बृम्ह अस्त्र के मान को,रखने देखो वीर।
बंधा खड़ा है राज में,मन में बाँधे धीर।
सिखा ज्ञान का पाठ भी,देते हैं संदेश।
छोड़ो सीता मातु को,सुन लो हे लंकेश।
मद में अपने चूर था,रावण जब भरपूर।
जला लंक तब आपने,गुरुर किया है चूर।
सारी लंका राख की,पल में तूने आज।
सारी धरती कह रही,कर आये प्रभु काज।
नमन वीर है कर रही ,अंजलि बारंबार।
हाथ माथ मेरे रखो,कर विनती स्वीकार।
राम नाम को जापते,रहें सदा हनुमंत।
कृपा दृष्टि अपनी हमें,देना ए भगवंत।
