विधा गीतिका
विधा गीतिका
छन्द लय ताल से नित विधा गीतिका ।
कर रही है प्रफुल्लित विधा गीतिका ।।
भाव-रस शिल्प - सौन्दर्य आनन्द के -
युग्म से है विभूषित विधा गीतिका ।
रूप - रस - छन्द गरिमामयी भाव हैं,
हर अलंकार पूरित विधा गीतिका।
नित नए काव्य - रस की सुधा से धरा ,
कर रही आज प्लावित विधा गीतिका।।
आन की, बान की, मान - सम्मान की ,
है ये' पहचान गर्वित विधा गीतिका ।
हो रही हर तरफ काव्य के कुञ्ज में ,
पल्लवित और पुष्पित विधा गीतिका ।
लेखनी की सतत साधना से हुई ,
सप्त सुर से सुसज्जित विधा गीतिका ।
छेड़कर तान वीणा की' माँ शारदे ,
कीजिए हृद्निनादित विधा गीतिका ।
सीख देती सदा सत्य की, न्याय की,
सार्थक सारगर्भित विधा गीतिका।
हर तरफ ज्ञान की ज्योति को एक दिन,
जगमगाएगी निश्चित विधा गीतिका ।
नव - सृजन का कलेवर लिए बहुमुखी
है शिखर पर सुशोभित विधा गीतिका ।
