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अनजान रसिक

Children Stories

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अनजान रसिक

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वैज्ञानिक सपना इक मेरा

वैज्ञानिक सपना इक मेरा

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विज्ञान और उसके चमत्कारों की आभा कुछ ऐसी,

अँधेरी अमावस्या कि रात में दीपक की जगमग ज्योति जैसी.

विज्ञान ने तो बदल डाला दुनिया के इतिहास और भविष्य,

जो कभी सपने में सोच न सके, खोला ऐसी संभावनाओं का पिटारा.

एक दिन देखा विज्ञान से ओत प्रोत ऐसा एक सपना मैंने भी ,

कि पहुँच गए ज्यूपिटर पर कार्यालय की एक सभा के सिलसिले में हम सभी.

अद्भुत थे नज़ारे वहां की दुनिया के, मनमोहक वातावरण था चहुँ - ओर,

थी ये रब की मेहर या कुदरत का करिश्मा कोई,

यह सोचते रह गए सभी किया जो सर्वत्र सभी ने गौर.

पानी था सुर्ख लाल,जिस से आती थी महक गुलाब के इत्र सी,

सुन्दर उपवनों की मनोहरी छटा से प्रतीत होता था हर दिन मानो हो होली - दीवाली.

कक्ष में अपने किया जो प्रवेश, तो लगा बहुत भारी - भारी,

ढाई गुना ज़्यादा गुरुत्वाकर्षण जो है धरती पर ज्यूपिटर की.

नर -नारी वहां के थे एलियन, उनका रहन - सहन और वेश भूषा थी हमारी समझ के परे,

पहनते थे साफे रोज़ सर पर, सुनहरे कपड़ों से थे उनके तन सजे.

दस घंटे का वहाँ का दिन लगता था बहुत लघु,बहुत ही छोटा,

शीत-लहरें सर्वदा चलती थीं,बर्फ से आच्छादित रहता था कोना - कोना.

चलो एक कदम तो लगता था मानो सागर - भ्रमण पे निकल गए हम सभी,

पैरों तले ज़मीन खिसक गयीं थीं,

धरातल पर व्याप्त था जो बस धुँआ - धुँआ, पानी- पानी..

चार चाँदों से चार चाँद लगे थे धरती में वहाँ की,

विसमित रह गयी सोच के कि पूजा करूँ अब किस मामा की.

बाज़ कहलाये जाने वाले, सूर्य देवता के नाम से

प्रख्यात ज्यूपिटर को अन्य सूर्य के प्रकाश की ना कोई आवश्यकता थी,

नमन कर लिया मन्त्रमुग्ध होकर मैंने उस धरती की, आभा उसकी इतनी आकर्षक थी.

सपना टूट गया अचानक मेरा मम्मी ने आवाज़ लगाई जो,

"जिसने सोया उसने खोया की " गर्जना ज़ोर से मेरे कान पे सीटी बजाई जो.

आँखेें तो खुल गयीं पर ह्रदय मेरा ज्यूपिटर पे ही छूट गया था,

इतना सुरमई, इतना सुखदायी वो वैज्ञानिक सपना मेरा था..


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