उषा का दर्द
उषा का दर्द
नित्य व्योम में चलते- चलते
जब भी, दिनकर थक जाता है
लिए बिछौना बदली का वह
सुध बुध खो कर सो जाता है।।
प्रातःउसे झकझोरती ,उषा !
कान में हौले से है उसके,कहती,
सुनो! रहने दो तुम ,आज न जाओ
यह तपन धरा पर मत फैलाओ ।।
हर रोज़ समय पर तुम जाते हो
थककर, सांझ को ,घर आते हो
एक दिन तुम भी छुट्टी ले लो
कभी संग मेरे भी, खेलो-कूदो।।
जब भी तुम,वसुधा पर हो जाते
मन मेरा व्याकुल, हो कर जाते
दिनभर यह चांद भी सोता रहता
फिर सांझ ढले ही जग पाता है।।
संग सितारों ,को भी यह ले जाता
फिर पुनःप्रातः ही दिख पाता है
तुम दोनों,बदली से मिल आते
फिर मुझको ही क्यों? हो छलते ।।
बदली संग खेली छुपमछुपाई
याद मेरी फिर क्यों?नहीं आई
मैं हर रोज़ अकेली हो जाती हूं
रो-रोकर, अक्सर सो जाती हूं।
