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Shatakshi Sarswat

Others

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Shatakshi Sarswat

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उस शाम में

उस शाम में

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नदी किनारे बैठे उस शाम में,

बहती हुई लहरों की उस शाम में,

निकला था एक गीत मन के द्वार से,

कि खो जाऊँ आज बस इसी शाम में।


बैठी हुई चिड़िया भी गूँज उठी उस शाम में,

पंख फैलाए अपने गगन के जाम में।

ढलते हुए सूरज की उस शाम में,

झूम उठा सारा वातावरण भी साथ में।


ढलते हुए सूरज के सामने,

बैठी थी पेड़ की छाँव में,

मोह लिया मन उसी शाम ने,

कुछ तो बात थी उस शाम में,

जो खो गई में किसी और संसार में।



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