उम्मीदें (बाल मनोविज्ञान)
उम्मीदें (बाल मनोविज्ञान)
एक बेचारा बालक सोचे कैसे मैं समझाऊं
कैसे अपनी ज़िद्दी माँ को मैं ये विश्वास दिलाऊं
बहुत जतन से पाए मैंने देखो नंबर चार
फिर भी ना मेरी माता को आता मुझ पर प्यार
क्या समझाऊं दिन भर के मैं कितनी कोशिश
करता हूं
अंक कहीं ना कम आएं बस यही सोचकर
डरता हूं
भोली है मेरी माँ को उम्मीदें मुझसे ज्यादा हैं
पर रखना तू याद ओ माँ यह मेरा तुझ से
वादा है
तेरी राह के कांटों पर मखमल बनके
बिछ जाऊंगा
अच्छा शिष्य ना बन पाऊं पर अच्छा
पुत्र कहाऊंगा
बुद्धि मेरी छोटी चाहे दिल तूने है बढ़ा दिया
प्रेम रगों में बहता मेरी ऐसे तूने बड़ा किया
तू मेरी मूर्खता को ना अपने विवेक से तोल
इतना कुछ कह डाला मैंने अब तू भी कुछ
तो बोल
जो भी कुछ होता कक्षा में मेरा नहीं है दोष
खुश हो जा अब तो ओ माँ और कर ले तू संतोष
